पाकिस्तान में रिश्तेदारों से मिलने गए भारतीय नागरिक लाहौर और वाघा बॉर्डर पर फंसे
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अपने परिजनों से मिलने गए कुछ भारतीय नागरिक वहां फंसे हुए हैं, क्योंकि हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत-पाक सीमा को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है। इन घटनाओं के कारण वाघा बॉर्डर से आवाजाही रोक दी गई, जिससे लौटने की कोशिश कर रहे भारतीय नागरिकों को पाकिस्तान में ही रुकना पड़ा। फंसे हुए लोगों ने अपने परिवारों को फोन पर स्थिति की जानकारी दी है, लेकिन उन्हें यह चिंता सता रही है कि यह अनिश्चितता कब खत्म होगी।
लखनऊ के आलमबाग क्षेत्र में रहने वाले वासुराम रिश्तेदारों से मिलने सिंध गए थे, लेकिन लौटते समय उन्हें सीमा पर रोक दिया गया। उनके साथ तीन अन्य नागरिक भी पाकिस्तान गए थे, जिनकी वापसी भी संभव नहीं हो सकी। कृष्णा नगर के निवासी रमेश लाल अपने परिवार के साथ अपनी भतीजी की शादी में शामिल होने के लिए पाकिस्तान गए थे। यह विवाह समारोह 25 अप्रैल को सिंध के घोटाकी जिले में स्थित पन्नू आकिल मोहल्ले में आयोजित हुआ था। शादी के बाद लौटते समय रमेश लाल और उनके साथ गए नटखेड़ा के हरीश लाल लाहौर में फंसे रह गए हैं।
भारत में रह रहे इन नागरिकों के परिवारजन दिन-रात उनसे संपर्क में हैं और उनकी स्थिति को लेकर लगातार चिंतित हैं। वे रोजाना कॉल करके हालचाल ले रहे हैं लेकिन सीमा के हालात को देखते हुए उन्हें यह भय है कि इस बार इंतजार बहुत लंबा हो सकता है। वर्तमान तनावपूर्ण स्थिति ने खासतौर पर लखनऊ और आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले सिंधी समुदाय को बेचैनी में डाल दिया है, क्योंकि उनके अनेक रिश्तेदार पाकिस्तान में रहते हैं या हाल ही में वहां गए हैं।
देश के विभाजन के समय पाकिस्तान से विस्थापित होकर करीब 5000 सिंधी परिवार लखनऊ में आकर बसे थे। इन परिवारों ने भारत में नए जीवन की शुरुआत की और समय के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से खुद को स्थापित किया। भारत-पाक रिश्तों में जब थोड़ी स्थिरता आई, तब लॉन्ग टर्म वीजा की सुविधा के माध्यम से सिंधी परिवारों ने पाकिस्तान में अपने बचे हुए संबंधों से मेलजोल फिर से शुरू किया।
2018 के बाद से भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया में भी तेजी आई, और बीते छह वर्षों में 400 से अधिक लोगों को नागरिकता दी जा चुकी है।
फिर भी पाकिस्तान में रह रहे हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति आज भी चिंताजनक बनी हुई है। सिंध, बलूचिस्तान और अन्य क्षेत्रों में धार्मिक अल्पसंख्यकों को लगातार उत्पीड़न, जबरन धर्मांतरण और सामाजिक असुरक्षा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसी कारण बहुत से लोग भारत आकर स्थायी रूप से बसना चाहते हैं, लेकिन कानूनी प्रक्रियाओं और सीमाओं से जुड़े मुद्दे राह में बाधा बन जाते हैं।
वर्तमान हालात ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सीमापार पारिवारिक संबंधों पर जब कोई संकट आता है तो उसका प्रभाव केवल दो देशों के बीच के कूटनीतिक रिश्तों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह आम नागरिकों के जीवन को भी गहराई से प्रभावित करता है। सरकारों से यह अपेक्षा की जा रही है कि वे इन फंसे हुए नागरिकों की सुरक्षित और शीघ्र वापसी के लिए आवश्यक राजनयिक प्रयास करें।
इस घटना ने यह भी दिखाया है कि सीमाई आवाजाही और रिश्तेदारों से मिलने की इच्छा जैसे मानवीय मामलों को सुरक्षा के बड़े ढांचे में बहुत जल्दी बंद कर दिया जाता है, जिससे निर्दोष नागरिक संकट में पड़ जाते हैं। स्थानीय सिंधी समाज के प्रतिनिधियों ने इस विषय में भारत सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है ताकि जल्द से जल्द इन लोगों की वापसी संभव हो सके।