कॉलेजियम प्रणाली पर याचिका की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में तीखी नोकझोंक, कहा– 'यहां राजनीतिक भाषण न दें।'

नई दिल्ली में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान एक असाधारण दृश्य देखने को मिला, जब देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना ने अदालत में एक वरिष्ठ अधिवक्ता पर कड़ा रुख अपनाते हुए स्पष्ट चेतावनी दी। यह स्थिति तब उत्पन्न हुई जब अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुम्परा ने 2022 में दायर एक लंबित याचिका का उल्लेख करते हुए कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने और इसके स्थान पर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को दोबारा लागू करने की मांग दोहराई। नेदुम्परा ने अदालत से आग्रह करते हुए कहा कि यह याचिका पहले तत्कालीन CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ के समक्ष तीन बार उल्लेखित की जा चुकी है, लेकिन अभी तक इसे सूचीबद्ध नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए एनजेएसी जैसी प्रणाली आवश्यक है और यह जनता की अपेक्षाओं से भी जुड़ा हुआ विषय है। उन्होंने कहा, "देश को न्यायिक नियुक्तियों में निष्पक्षता चाहिए, और उपराष्ट्रपति तक इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं।"


यह सुनकर CJI संजीव खन्ना ने नाराज़गी जताई और वकील को फटकारते हुए कहा कि अदालत को राजनीतिक मंच बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “कृपया मेरे मुंह में अपने शब्द न डालें। यह अदालत है, कोई राजनीतिक मंच नहीं। यहां राजनीतिक भाषणबाजी की कोई जगह नहीं है।” गौरतलब है कि पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने यह याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया था कि 2015 में एनजेएसी पर आए फैसले में इस मुद्दे का समाधान हो चुका है। कोर्ट ने उस फैसले में एनजेएसी अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करते हुए यह टिप्पणी की थी कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरे में डालता है।

याचिकाकर्ता द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई नई याचिका को दरअसल पहले ही दिए गए फैसले की पुनर्समीक्षा के प्रयास के रूप में देखा गया, जिसे प्रक्रिया के अनुसार स्वीकार नहीं किया गया। एनजेएसी अधिनियम 2014 में संसद द्वारा पारित किया गया था और इसे अधिकांश राज्यों ने भी स्वीकृति दी थी। इसका उद्देश्य न्यायपालिका, कार्यपालिका और कुछ प्रतिष्ठित नागरिकों की भागीदारी से एक न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाना था, जिससे न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 के "Supreme Court Advocates-on-Record Association बनाम भारत संघ" मामले में इस अधिनियम को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को कमजोर करता है।

एनजेएसी को लेकर देश में लंबे समय से बहस चल रही है। न्यायिक नियुक्तियों को लेकर पारदर्शिता, जवाबदेही और पक्षपात से मुक्ति की मांग को लेकर समय-समय पर यह मुद्दा संसद से लेकर कोर्ट तक में उठाया जाता रहा है। हालांकि न्यायपालिका बार-बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि उसकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए कॉलेजियम प्रणाली फिलहाल सर्वोत्तम उपाय है, लेकिन इस पर असहमति के स्वर लगातार उभरते रहे हैं। यह विवाद एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया को किस हद तक कार्यपालिका और अन्य बाहरी संस्थाओं के प्रभाव से मुक्त रखा जाना चाहिए।

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