
गैर-जमानती वारंट के बाद गिरफ्तारी, कोर्ट ने कुछ घंटों में ही मेधा पाटकर को छोड़ा
दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को उनकी गिरफ्तारी के कुछ ही घंटों बाद रिहा करने का निर्देश दिया। यह गिरफ्तारी दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दायर 24 वर्ष पुराने मानहानि मामले में परिवीक्षा बांड (Probation Bond) दाखिल न करने के कारण हुई थी। साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विपिन खरब के समक्ष पेश हुईं पाटकर के वकील ने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें प्रोबेशन बांड दाखिल करने का अवसर दिया जाए।
न्यायाधीश ने पूछा, "क्या आपको 3 मई तक का समय नहीं दिया गया था?"
पाटकर के वकील ने जवाब दिया कि वह अदालत जा रही थीं तभी उन्हें हिरासत में लिया गया। उन्होंने कहा, "मैं आज ही बांड दाखिल करने के लिए तैयार हूं। एनबीडब्ल्यू निष्पादित हो चुका है, मैं इस पर बहस नहीं कर रहा।" इसके बाद अदालत ने उन्हें बांड भरने की अनुमति दी और रिहा करने का आदेश दिया। उन्हें दोपहर 12:30 बजे न्यायाधीश के समक्ष पेश किया गया था।
इससे दो दिन पहले, साकेत कोर्ट के एएसजे विशाल सिंह ने निर्देश दिया था कि यदि पाटकर 8 अप्रैल 2025 को सुनाए गए सजा आदेश की शर्तों का पालन नहीं करतीं, तो अदालत को उनकी सजा पर पुनर्विचार करना पड़ेगा। इसी आदेश के अनुपालन में पुलिस ने शुक्रवार सुबह उनके आवास पर जाकर उन्हें गिरफ्तार किया था।
डीसीपी रवि कुमार सिंह ने पुष्टि की, "गैर-जमानती वारंट के तहत मेधा पाटकर को गिरफ्तार किया गया है।"
यह मानहानि का मामला वर्ष 2000 में दायर हुआ था, जब मेधा पाटकर ने एक प्रेस बयान में वीके सक्सेना पर हवाला लेनदेन और एनबीए के गुप्त समर्थन का आरोप लगाया था। उस वक्त सक्सेना गुजरात स्थित एनजीओ 'नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज' के अध्यक्ष थे, जो सरदार सरोवर परियोजना का समर्थन कर रहा था, जबकि पाटकर का 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' इसका विरोध कर रहा था।
बयान में पाटकर ने सक्सेना को "कायर" बताया था और आरोप लगाया था कि उन्होंने एनबीए को चेक दिया था, जो बाउंस हो गया।
इस बयान को लेकर दायर मानहानि के मुकदमे में मजिस्ट्रेट अदालत ने 24 मई 2024 को पाटकर को दोषी ठहराते हुए एक जुलाई को पांच महीने की सजा सुनाई थी। हालांकि, सत्र अदालत ने बाद में इस सजा को निलंबित कर दिया था और उन्हें 29 जुलाई को जमानत पर रिहा कर दिया गया था।
8 अप्रैल को एएसजे सिंह ने पाटकर को एक वर्ष की परिवीक्षा पर छोड़ते हुए कहा था कि उनके सामाजिक कार्यों को देखते हुए यह मामला ऐसा नहीं है जिसमें कारावास अनिवार्य हो। कोर्ट ने उन्हें 23 अप्रैल तक प्रोबेशन बांड भरने का निर्देश दिया था।
पेशी के दौरान एलजी सक्सेना के वकील गजिंदर कुमार भी अदालत में मौजूद रहे।
For all the political updates download our Molitics App :
Click here to Download