"जिसने पाला-पोसा, क्या वो मां नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने वायुसेना की दलील पर जताई नाराज़गी"

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम सवाल पर विचार करने की सहमति जताई, क्या वायुसेना के नियमों के तहत एक सौतेली मां पारिवारिक पेंशन की पात्र हो सकती है? न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने वायुसेना द्वारा पेंशन देने से इनकार पर नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा कि "मां" एक व्यापक और संवेदनशील अवधारणा है, जिसे केवल जैविक संबंधों तक सीमित नहीं किया जा सकता।


सुनवाई के दौरान, पीठ ने वायुसेना के वकील से तीखे सवाल पूछे। जस्टिस सूर्यकांत ने उदाहरण देते हुए कहा, "यदि कोई बच्चा पैदा होते ही अपनी जैविक मां को खो देता है और फिर उसके पिता दूसरी शादी कर लेते हैं, तो वह सौतेली मां ही उसका पालन-पोषण करती है। क्या वह मां नहीं मानी जाएगी?" वायुसेना के वकील ने दलील दी कि विभिन्न अदालती निर्णयों में सौतेली मां को पारिवारिक पेंशन से बाहर रखा गया है। इस पर अदालत ने असहमति जताते हुए कहा कि केवल नियमों के आधार पर किसी को अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट कहा, "नियम वो होते हैं जो न्याय के आधार पर बनाए जाते हैं, संविधान के खिलाफ नहीं।

पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता और वायुसेना, दोनों पक्षों के वकील मामले की पूरी तैयारी के साथ नहीं आए हैं। न्यायालय ने उन्हें निर्देश दिया कि वे पहले संबंधित न्यायिक आदेशों और नियमों का विस्तार से अध्ययन करें और फिर अदालत में पेश हों। इसके बाद, सुनवाई 7 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी गई।

यह मामला जयश्री नामक महिला से जुड़ा है, जिन्होंने अपने सौतेले बेटे हर्ष का पालन-पोषण उसकी जैविक मां की मृत्यु के बाद किया था। हर्ष बाद में भारतीय वायुसेना में शामिल हुआ, लेकिन उसकी असामयिक मृत्यु के बाद जयश्री ने पेंशन की मांग की। वायुसेना ने सौतेली मां को पात्र नहीं माना और पेंशन देने से इनकार कर दिया। जयश्री ने यह मामला पहले सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल में दायर किया, जहां 10 दिसंबर 2021 को ट्रिब्यूनल ने भी उनके पक्ष में निर्णय नहीं दिया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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