
भारत का मानव विकास सूचकांक स्कोर बढ़ा, वैश्विक रैंकिंग में सुधार, 130वें पायदान पर पहुंचा
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा मंगलवार को जारी रिपोर्ट ‘ए मैटर ऑफ चॉइस: पीपुल एंड पॉसिबिलिटीज इन द एज ऑफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ के अनुसार, भारत ने वर्ष 2023 के लिए मानव विकास सूचकांक (HDI) में चार स्थान की छलांग लगाई है और अब वह 193 देशों में 130वें स्थान पर पहुंच गया है। भारत का HDI स्कोर 2022 के 0.644 से बढ़कर 2023 में 0.685 हो गया, जो कि देश में स्वास्थ्य, शिक्षा और आय के स्तर में हुए कुछ सुधार का परिणाम है। हालांकि यह प्रगति उल्लेखनीय है, फिर भी भारत अभी भी ‘मध्यम मानव विकास’ श्रेणी में ही बना हुआ है और बांग्लादेश के समान HDI स्कोर साझा करता है, हालांकि दोनों देशों के सूचकांकों में अंतर है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जीवन प्रत्याशा 2022 में 67.7 वर्ष थी, जो 2023 में बढ़कर 72 वर्ष हो गई है। इसके साथ ही, अपेक्षित स्कूली शिक्षा की अवधि 12.6 वर्ष से बढ़कर 13 वर्ष हो गई, जबकि औसत स्कूली शिक्षा का आंकड़ा 6.57 वर्ष से बढ़कर 6.9 वर्ष हो गया है। आर्थिक दृष्टि से देखें तो प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) 2022 में $6,951 थी, जो 2023 में बढ़कर $9,047 (PPP 2021) हो गई। इसके विपरीत, बांग्लादेश ने भले ही उच्च जीवन प्रत्याशा (74.7 वर्ष) दर्ज की हो, लेकिन उसकी GNI भारत से कम ($8,498) रही।
हालांकि, जब असमानताओं को ध्यान में रखकर आकलन किया गया, तो भारत का HDI गिरकर 0.475 रह गया, जो 30.66% की गिरावट दर्शाता है। इसका अर्थ है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और आय में व्याप्त असमानताएं अभी भी गहरी हैं। लैंगिक असमानता भी एक चुनौती बनी हुई है। लैंगिक विकास सूचकांक (GDI) 0.874 है, जिसमें पुरुषों का स्कोर 0.722 और महिलाओं का 0.631 है। भारत का लैंगिक असमानता सूचकांक (GII) 0.403 है और वह इस पैमाने पर 102वें स्थान पर है, जो प्रजनन स्वास्थ्य, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और कार्यबल में भागीदारी की चुनौतियों को उजागर करता है। ब्रिक्स देशों के संदर्भ में भारत अभी भी ब्राज़ील (89वां), रूस (59वां), चीन (75वां) और दक्षिण अफ्रीका (110वां) से पीछे है। दक्षिण एशिया में श्रीलंका सबसे बेहतर स्थिति में है, जबकि नेपाल और भूटान भारत से नीचे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि भारत की GNI प्रति व्यक्ति रैंक उसकी HDI रैंक से सात स्थान नीचे है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आय के मुकाबले स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया गया है।
रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि वैश्विक मानव विकास सूचकांक की प्रगति 1990 के बाद से सबसे धीमी गति पर आ गई है, यदि महामारी के वर्षों को छोड़ दिया जाए। बहुत उच्च और बहुत निम्न HDI वाले देशों के बीच की खाई लगातार चौथे वर्ष बढ़ी है, जिससे दशकों से चली आ रही असमानताएं फिर से गहराने लगी हैं। वर्ष 2024 के लिए सभी क्षेत्रों में HDI वृद्धि की गति धीमी रहने की आशंका है। यूएनडीपी के प्रशासक अचिम स्टीनर ने चिंता जताते हुए कहा कि यदि यह धीमी प्रगति नई सामान्य स्थिति बन जाती है, तो 2030 के लक्ष्यों की प्राप्ति कई दशक पीछे छूट जाएगी, जिससे दुनिया और असुरक्षित, अधिक विभाजित तथा वैश्विक झटकों के प्रति संवेदनशील बन जाएगी।
इस रिपोर्ट में विकास के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की भूमिका को उजागर किया गया है। हालांकि इसमें यह भी आगाह किया गया है कि यदि बुनियादी ढांचे की कमी और प्रतिभा का पलायन जारी रहा, तो असमानताएं और गहरी हो सकती हैं। भारत, जो दुनिया में सबसे अधिक AI कौशल की स्व-रिपोर्टिंग करता है, अब साझा कंप्यूटिंग सुविधाओं के माध्यम से AI अनुसंधान और स्टार्टअप्स को सहयोग देने की योजना बना रहा है। वर्तमान में AI का उपयोग वास्तविक समय कृषि सलाह, स्थानीय भाषाओं में सब्सिडी की जानकारी और बीमा सेवाओं तक पहुंच जैसी सेवाओं में हो रहा है।
रिपोर्ट के साथ प्रकाशित एक वैश्विक सर्वेक्षण में लोगों की मिश्रित प्रतिक्रिया सामने आई। आधे उत्तरदाताओं ने नौकरी के स्वचालन को लेकर चिंता जताई, वहीं दस में से छह लोगों ने AI से नए अवसर बनने की उम्मीद जताई। कम और मध्यम HDI वाले देशों में 70% लोगों ने AI से उत्पादकता में वृद्धि की उम्मीद की, और इनमें से दो-तिहाई ने एक वर्ष के भीतर शिक्षा, स्वास्थ्य या रोजगार में AI को अपनाने की योजना व्यक्त की। केवल 13% लोगों ने नौकरी खोने की आशंका जताई।
अंततः, UNDP ने नीति निर्माताओं से समावेशी विकास और वैश्विक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया है। स्टीनर ने कहा कि “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे जीवन के कई क्षेत्रों में तीव्र गति से प्रवेश कर रहा है। हमें इसके विकास में योगदान की क्षमता को समझते हुए, ऐसे विकल्प चुनने होंगे जो मानव विकास को पुनः गति दें और संभावनाओं के नए द्वार खोलें।”
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