'न्यायपालिका में जातिवाद गहराया' – सुप्रीम कोर्ट ने बर्खास्त जज के मामले में जताई चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को न्यायपालिका में जाति आधारित भेदभाव को लेकर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। कोर्ट ने एक दलित समुदाय से आने वाले न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी के मामले में सुनवाई करते हुए कहा, "क्या यह सहन नहीं हुआ कि एक उपेक्षित वर्ग का युवा, कम उम्र में जज बनकर उच्च वर्ग के बीच आ खड़ा हुआ?" यह टिप्पणी जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने की, जो पंजाब के एडिशनल सेशन जज प्रेम कुमार की बर्खास्तगी से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला केवल आचरण से जुड़ा नहीं, बल्कि जातिगत पूर्वग्रहों से प्रेरित प्रतीत होता है।


सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील ने प्रेम कुमार के पक्ष में दलीलें पेश कीं, जिस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “अगर आप चाहें तो मैं यह बात खुले अदालत में कहने को तैयार हूं कि प्रेम कुमार जातिगत भेदभाव का शिकार हुए हैं। उनका आचरण हमेशा अनुकरणीय रहा है, लेकिन उन्हें एक आपराधिक आरोपी की शिकायत के आधार पर संदिग्ध घोषित कर दिया गया।" वकील द्वारा हस्तक्षेप करने पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “आप उस समय वहां नहीं थे। मैं था। मुझे हाईकोर्ट में हुई तमाम बातों की जानकारी है।”

प्रेम कुमार ने 2014 में अमृतसर जिला कोर्ट में एडिशनल सेशन जज के रूप में कार्यभार संभाला। उनके खिलाफ आरोप यह था कि वकालत के दौरान उन्होंने दुष्कर्म पीड़िता से समझौते की कोशिश की और डेढ़ लाख रुपये दिलवाए। इस शिकायत की जांच विजिलेंस विभाग ने की, जिसके आधार पर उन्हें 'संदिग्ध निष्ठा' वाला बताया गया। साल 2022 में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की फुल बेंच ने उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया। प्रेम कुमार ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी और साक्ष्यों की कमी के चलते 2025 में हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी रद्द कर दी। 

इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां अब न्यायपालिका में जातिगत भेदभाव की गंभीरता को लेकर चर्चा तेज हो गई है। जस्टिस सूर्यकांत ने साफ किया कि जातिगत भेदभाव के ऐसे मामलों को अब नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। उन्होंने पूछा, “ऐसे हालात कब तक चलते रहेंगे?” – यह सवाल केवल एक मामले पर नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र के लिए एक चेतावनी है।

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