इतिहास में झूठ, पौराणिक कथाओं में एजेंडा और मुसलमानों के ख़िलाफ़ माहौल निर्माण के रास्ते पर चल रही भारतीय फ़िल्मों को कंट्रोल कर रहे हैं RSS के उद्देश्य और उसकी विचारधारा। RSS के दूसरे सरसंघचालक एम एस गोलवलकर ने अपनी किताब ‘वी ऑर अवर नेशनहुड’ में ग़ैर हिंदुओं के बारे में लिखा है जब तक वे अपने नस्ली, धार्मिक तथा सांस्कृतिक अंतरों को बनाये रखते हैं, वे केवल विदेशी हो सकते हैं, जो राष्ट्र के प्रति मित्रवत हो सकते हैं या शत्रुवत्त’। गोलवलकर की इन बातों का अर्थ यही है कि भारत केवल हिंदुओं का राष्ट्र् है और बाकी सभी धार्मिक और नस्ली समुदाय विदेशी हैं। सांप्रदायिक एजेंडे के अलावा RSS पौराणिक कथाओं को लेकर भी अपनी अलग परिभाषा रखता है, जो असमानता पर आधारित है। सांप्रदायिकता से ख़ाद पानी पाकर प्राचीन वर्ण व्यवस्था की हिमायत RSS लगातार करता है। मौजूदा दौर में फ़िल्में इसी विचार को मज़बूत कर रही हैं।
हिटलर के दौर की फिल्मों की तरफ़ निगाह की जाए, तो वहाँ भी ऐसे ही अवयव मिलेंगे। नेता का महिमामंडन, अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत का प्रचार, और राजनैतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ प्रोपेगैंडा नाज़ी जर्मनी में भी खूब होता था।