
महाराष्ट्र में स्कूली शिक्षा में बड़ा बदलाव, कक्षा 1-5 के लिए हिंदी अनिवार्य
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप, महाराष्ट्र सरकार ने स्कूली शिक्षा प्रणाली में एक अहम बदलाव की घोषणा की है। राज्य के स्कूल शिक्षा विभाग ने बुधवार, 16 अप्रैल 2025 को एक सरकारी संकल्प (Government Resolution - GR) जारी करते हुए स्पष्ट किया कि आगामी शैक्षणिक सत्र से राज्य के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के सभी स्कूलों में हिंदी को कक्षा 1 से 5 तक अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। फिलहाल, कक्षा 1 से 4 तक मराठी और अंग्रेजी भाषाएं अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाती रही हैं। तीसरी भाषा का प्रावधान केवल गैर-मराठी और गैर-अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में लागू किया गया था। लेकिन अब यह बदलाव पूरे राज्य में लागू किया जाएगा, जिससे तीन-भाषा फॉर्मूले का समरूप और व्यापक क्रियान्वयन सुनिश्चित हो सके।
NEP 2020 के अनुसार ढांचा होगा पुनर्गठित
सरकारी संकल्प के अनुसार, यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की अनुशंसाओं के आधार पर लिया गया है, जिसमें स्कूली शिक्षा को 5+3+3+4 की नई संरचना में विभाजित किया गया है। इस ढांचे में –
आधारभूत चरण: तीन साल की प्री-प्राइमरी शिक्षा + ग्रेड 1 और 2
प्रारंभिक चरण: ग्रेड 3 से 5
मध्य चरण: ग्रेड 6 से 8
माध्यमिक चरण: ग्रेड 9 से 12, इस संरचना का उद्देश्य छात्रों के मानसिक, भाषाई और सामाजिक विकास के हर स्तर पर उनकी आयु के अनुकूल शिक्षा प्रदान करना है।
राज्य शिक्षा बोर्ड का पाठ्यक्रम अब राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप तैयार किया जाएगा। हालांकि, विषयों जैसे इतिहास, भूगोल और भाषा में महाराष्ट्र के स्थानीय संदर्भों को समाहित करते हुए पाठ्यक्रम को राज्य विशेष के अनुकूल बनाया जाएगा, ताकि विद्यार्थियों की सांस्कृतिक समझ और क्षेत्रीय पहचान भी मजबूत हो।
GR में यह भी उल्लेख किया गया है कि शैक्षिक सुधारों की नींव पांच प्रमुख स्तंभों – समावेशिता, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही – पर रखी गई है। यह बदलाव न केवल शैक्षिक स्तर को ऊंचा उठाने का प्रयास है, बल्कि बहुभाषी भारत की विविधता को सम्मान देने और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय विद्यार्थियों में प्रारंभिक उम्र से ही बहुभाषिक क्षमता विकसित करने में सहायक होगा। इससे उनकी भाषाई समझ बढ़ेगी, साथ ही राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भाषाओं के बीच संतुलन भी स्थापित होगा।
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