CJI BR Gavai: मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई पर फेंका गया जूता, हमलावर वकील बोला - परमात्मा ने जो कराया, वो मैंने किया

 गुरुवार को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई (CJI BR Gavai)  कोर्टरूम में एक मामले की सुनवाई कर रहे थे… तभी एक बुजुर्ग जजेस की डेस्क के पास पहुंचता है। अपना जूता उतारता है… और जोर से चिल्लाता है, "सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान"... जूते को CJI गवई की तरफ उछाल देता है…। गार्ड्स वकील को पकड़ने की कोशिश करते हैं…. जूता जजेस की डेस्क को पार करते जस्टिस विनोद चंद्रन के पास गिरता है..। जस्टिस चंद्रन बाल-बाल बचते हैं…। गार्ड्स हमलावर वकील को पकड़ लेते हैं। हमलावर वकील, जस्टिस चंद्रन से माफी मांगता है और कहता है, “मैंने गवई साहब की तरफ फेंका था।” इतना सब कुछ हुआ लेकिन CJI गवई बिल्कुल शांत रहे। एकाग्र! और बोले“ मुझे इन सब चीजों से फर्क नहीं पड़ता। आप लोग अपनी बहस जारी रखिए, इन सबपर ध्यान मत दीजिए। इस घटिया हरकत के लिए कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट के तहत राकेश किशोर को जेल में होना चाहिए था लेकिन CJI गवई ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से कहा कि उस वकील पर कोई कार्रवाई न की जाए। और वकील को छोड़ दिया गया।  


परमात्मा ने जो कराया, वो मैंने किया : हमलावर वकील


हमलावर वकील का नाम राकेश किशोर है। वो कहता है कि ये सब मैंने नहीं, भगवान ने किया है। CJI गवई ने सनातन का मजाक उड़ाया था। परमात्मा की शक्ति मुझे नींद से उठाकर कहती थी कि देश जल रहा है, तुम सो रहे हो… मैंने कुछ भी नहीं किया.. परमात्मा ने जो कराया, वो मैंने किया…।” तो ऐसा क्या कर दिया CJI ने जो सनातनी विरोधी था? 

दरअसल CJI BR Gavai खजुराहो मंदिर से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, याचिका में मध्य प्रदेश की खजुराहो मंदिर परिसर में भगवान विष्णु की 7 फुट ऊंची मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग की गई थी। कहा गया था कि ये मूर्ति मुगलों के आक्रमण के दौरान खंडित हो गई थी, और तब से यह इसी हालत में है। इसलिए श्रद्धालुओं के पूजा के अधिकार की रक्षा और मंदिर की पवित्रता को पुनर्जीवित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप करे। पुरानी जर्जर मूर्ति को फिर से बनाने का आदेश जारी करे। लेकिन CJI बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने 16 सितंबर को इस याचिका को खारिज कर दिया था। सुनवाई के दौरान CJI गवई ने कहा था कि "यह सिर्फ पब्लिसिटी के लिए दायर की गई याचिका है। जाओ और भगवान से खुद करने को कहो। तुम कहते हो भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हो, जाओ उनसे प्रार्थना करो।" 

जस्टिस गवई की ये टिप्पणी कहीं से गलत नहीं लगती….। देश में गंभीर मुकदमों की संख्या करोड़ों में है…. लाखों लोग न्याय की आस में बैठे हैं…। लेकिन RSS के नफरती चिंटू अंडबंड याचिका लेकर कोर्ट पहुंच जाते हैं…। अदालत का कीमती समय खाते हैं। वह समय जो किसी को न्याय दिला सकता है…। कभी मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने कोर्ट पहुंच जाते हैं… तो कभी किसी फिल्म को बैन कराने के लिए… तो कभी ऐतिहासिक धरोहरों पर पूजा करने या पुनरुद्धार कराने के लिए….।

सुप्रीम कोर्ट पर भी सवाल?


सवाल यहाँ सुप्रीम कोर्ट के वर्चस्व पर भी उठ रहा है, यूपी के बुलडोजर कानून पर सुप्रीम कोर्ट और अलग-अलग जजों ने सख्ती दिखाई। पर नतीजा क्या निकला? क्या सुप्रीम कोर्ट की इतनी हैसियत बची है कि अपने आदेशों को सचमुच लागू करवा सके? इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव ने एक समुदाय के खिलाफ दंगाइयों जैसी भाषा का इस्तेमाल किया। जब सुप्रीम कोर्ट ने उनसे सफाई मांगी, तो उनकी सभ्य भाषा का यही मतलब निकला —“जो उखाड़ना है, उखाड़ लीजिए, मैं वैसे ही बोलूंगा।” और मामला और उलझ गया। 

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, जो मोदी के टैलेंट हंट से बने थे, अचानक हटाए गए। अंदर की कहानी ये सामने आई कि विपक्ष जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग लाने वाला था, और धनखड़ उसे मंजूरी देने वाले थे। लेकिन सत्ता ने ऐसा मोड़ लिया कि उप-राष्ट्रपति को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। 

दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी और संघ परिवार की कभी न्यायपालिका में असली आस्था नहीं रही। इतिहास में भारत रत्न लालकृष्ण आडवाणी के बयान मिलेंगे — जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को धमकाते हुए कहा कि “राम जन्मभूमि मामला आस्था का प्रश्न है, इसपर कोई अदालत का निर्णय मान्य नहीं होगा, आप बीच में मत आइए।” यानी अदालत और कानून, सत्ता के आगे अक्सर दब जाते हैं।

 आख़िर कौन है यह वकील, जो खुद को सनातनी कहता है और खंडित मूर्ति पर नाराज़ हो गया? हिंदू समाज में तो खंडित मूर्ति की पूजा वर्जित है। फिर यह गुस्सा क्यों? बात दरअसल सारी खजुराहो की याचिका तक सीमित नहीं लगती। शायद यह उस प्रसंग से भी जुड़ा है जब CJI गवई ने संघ के शताब्दी समारोह का आमंत्रण ठुकरा दिया था। याद कीजिए, संघ का आमंत्रण तो पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी तक नहीं ठुकरा पाए थे। लेकिन याद रखिए जनता ही असली ताकत है। यही जनता बढ़ती मनुवादी सोच से देश को बचा सकती है। 

CJI पर फेंका गया जूता या संविधान पर


सबका साथ, सबका विकास, सबका DNA” कहने वाली भाजपा और संघ, वास्तव में एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। और यही असली चोट है यह जूता CJI पर नहीं, बल्कि हमारे संविधान पर फेंका गया है। वास्तव में, यह मनुस्मृति के दीवानों की सोच का एक सिम्बल है, जो समाज में भेदभाव पैदा करती है। स्त्री, दलित और पिछड़ों को गुलाम मानती है। मुसलमान को म्लेच्छ कहती है। सिर्फ ब्राह्मण और क्षत्रिय को महत्व देती है। और इन क्षत्रियों की भी दुर्दशा क्या रही, वे युद्ध में मरते रहे, दक्षिणा के नाम पर अपनी संपत्ति गुरु को लुटाते रहे, खुद कंगाल रहे और गुरु मालामाल। राजस्थान में उनके महलों का आलिशान स्वरूप आज भी राजमहलों से खूबसूरत दिखता है। आज भी यही कौम समाज के अधिकारों पर लंबे समय से कब्जा किए हुए है। और जब एक वंचित व्यक्ति CJI बन जाता है तो कट्टर मनुवादी सोच को यही चुभन देती है। 

संघ का दुलारा यूट्यूबर पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ बड़े गर्व से दावा कर रहा है “प्रधानमंत्री ने खुद जस्टिस रंजन गोगोई को एक कागज दिखाकर ब्लैकमेल किया, तभी राम मंदिर का ऐतिहासिक फैसला आया।” और यह कोई मामूली बात नहीं थी। इस फैसले के बाद जस्टिस गोगोई ने न सिर्फ मी-टू मामले से बचाव किया, बल्कि वे राज्यसभा सांसद भी बन गए। अब जनता के सामने भी ये बात साफ़ हो गई है कि न्यायपालिका और सरकार के रिश्ते हमेशा इतने सीधे और खुले नहीं दिखते। 

प्रशांत भूषण जैसे लोग खुलकर कह रहे हैं जजों की ब्लैकमेलिंग के लिए बीजेपी ने पूरा सिस्टम तैयार किया हुआ है। इसलिए कोई भी फैसला जो सरकार की मंशा के खिलाफ हो, वह मुश्किल से ही हो पाता है और हाँ, जिस जूता फेंकने वाले वकील ने CJI BR Gavai पर हमला करने की कोशिश की, उसमें जातीय नफ़रत भी थी। 

नफरती अजीत भारती ने कहा और होंगी ऐसी घटनाएं


हिन्दुवादी सगठन और उनके ऐंकर्ज़ हमले को सही ठहराने में लगे हैं, इनमे एक है अजीत भारती… जो बड़ी बेचैनी से भारत को हिंदू राष्ट्र बना लेना चाहता है, आए दिन दलित-आदिवासियों और मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाता है, भीमटे जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता है और बाबा साहब को अपशब्द कह कर अपना घर चलाता है, अजीत भारती की एक पोस्ट वायरल हुई जिसमें वह दो लोगों के साथ बैठकर ये बता रहा है कि कैसे सीजेआई गवई को घेरकर उनपर हमला किया जा सकता है… । सोशल मीडिया पर सीजीआई को धमकी दी जा रही है, जो एक मामूली घटना नहीं मालूम पड़ती, इतनी हिमाक़त करने के लिए सिस्टम का सपोर्ट होना पहली शर्त होती है। 

अजीत को गिरफ़्तार किया गया लेकिन अजीत अपनी विचारधारा के पुरखों से तालीम लिया हुआ निकला, माफ़ीनामा सौंपा और जो क्रांति करने वो निकला था उसे कोड़ियों के भाव बेच दिया, यानी जिसे हमारे यहाँ कहते हैं थूक के चाट लेना। अजीत पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, उसके विवादित बयानों से सौहार्द नहीं बिगड़ेगा, वो CJI पर हमले की तारीफ़ करता भी है तो उससे समाज में भाई चारे का संदेश जाएगा, SC ST OBC वालों, आँखें खोलो, CJI पर जूता फेंका गया है, आप तो हैं ही कौन।

 क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर अजीत भारती बीजेपी के इको-सिस्टम से बाहर का होता, तो उसे यू ही रिहा कर दिया जाता? बात सिर्फ़ गोदी ऐंकरों तक सीमित नहीं थी, कर्नाटक बीजेपी नेता भास्कर राव ने आरोपी वकील राकेश किशोर की तारीफ करते कहते हैं “भले ही यह कानूनी तौर पर गलत है, लेकिन आपकी हिम्मत काबिल-ए-तारीफ है। इस उम्र में साहस दिखाकर खड़े होना और नतीजों की परवाह न करना, वाह!” इस बयान ने विपक्ष के कान खड़े कर दिए। राकेश किशोर को इस हरकत के लिए निलम्बित कर दिया गया है, हो सकता है उसके लिए भी कोई राज्य सभा की सीट इंतिज़ार कर रही होगी! 

निलंबन के बाद वकील किशोर का मीडिया इंटरव्यू कर रहा है और सारे न्यूज चैनल उसका महिमामंडन कर रहे हैं। उसका कहना है, कि "कोई पछतावा नहीं, कोई दुख नहीं, कोई पश्चाताप नहीं।" तो गाइज़, राकेश को निलम्बित किया है तो कुछ अच्छा ही सोचा होगा उनके बारे में, वो भी बिना पद लिए कहाँ रहेंगे, और दंगाइयों को मात करने वाले जस्टिस शेखर यादव भी एक दिन सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाएँगे और हो सकता है हरि इच्छा से आगे चलकर चीफ जस्टिस भी बन जायें। रामराज की ये सिर्फ झांकी है, असली पिक्चर अभी बाकी है। जय भीम!

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