Fake Voters in Bihar Final Voter List : बिहार की फाइनल वोटर लिस्ट में 14 लाख 35 हजार से ज्यादा संदिग्ध डुप्लीकेट वोटर्स, 1 करोड़ 32 लाख वोटर्स के पते संदिग्ध

Fake Voters in Bihar Final Voter List: बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया 24 जून को शुरू हुई। कहा गया कि डुप्लीकेट एंट्रीज, मृत वोटरों और माइग्रेंट्स की गड़बड़ियां दूर किया जाएगा। BLOs पूरे बिहार में घर-घर जाएंगे, 2003 के बाद वाले वोटर्स का पहचान, पता, और डेट ऑफ बर्थ को वेरिफाई करेंगे। शुरू में ECI ने पहचान के तौर पर आधार को शामिल करने से इनकार कर दिया। जन्मप्रमाण पत्र और पासपोर्ट जैसे सख्त डॉक्युमेंट मांगे…। लेकिन जब सुप्रीम ने फटकार लगाई तो आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया। ECI दावा करता रहा कि BLOs घर-घर जाकर वोटर्स के डॉक्युमेंट्स और डीटेल्स वेरिफाई कर रहे हैं, जबकि सच्चाई इसके उलट थी..। बहुत सारी जगहों पर वोटर्स को फॉर्म सब्मिट कराने खुद BLO के पास जाना पड़ा। कई वोटर्स ने यहां तक दावा किया कि डॉक्युमेंट सब्मिट कराने के बावजूद उनका नाम वोटर लिस्ट से काट दिया गया। 


राहुल गांधी के इलेक्शन कमीशन पर आरोप


SIR के खिलाफ राहुल गांधी ने वोटर अधिकार यात्रा निकाली..। तेजस्वी यादव भी उनके साथ रहे…। पूरी यात्रा में उन्होंने भाजपा और ECI पर मिलीभगत और वोटचोरी का आरोप लगाया…। राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष हैं…। तेजस्वी यादव बिहार की सबसे बड़ी पार्टी का चेहरा हैं। अगर देश के दो बड़े नेता चुनाव प्रक्रिया पर इतने गंभीर आरोप लगाएं तो इलेक्शन कमीशन को उन्हें बुलाना चाहिए… उनकी शंका और सवालों का समाधान करना चाहिए…। और अगर फिर भी वह संतुष्ट न हो तो इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया को पद से हट जाना चाहिए और किसी ऐसे व्यक्ति को ECI चुनना चाहिए जिसपर पक्ष ही नहीं विपक्ष भी भरोसा कर सके…। लेकिन यहां तो पूरे कुएं में भांग घुली है। 

वही हुआ जिसकी राहुल गांधी को आशंका  थी!


 आरोप-प्रत्यारोप के बीच 1 अगस्त को ड्राफ्ट लिस्ट जारी हुई। ड्राफ्ट लिस्ट में ठीक वैसा ही हुआ जैसा राहुल और तेजस्वी आशंका जता रहे थे..। वोटर ड्राफ्ट लिस्ट से 65 लाख नाम हटा दिए गए। इसमें 22 लाख मृत, 35 लाख माइग्रेन्ट, 7 लाख एक से ज्यादा जगह रजिस्टर्ड बताए गए..। इलेक्शन कमीशन ने नाम तो काटे लेकिन लिस्ट जारी नहीं की..। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा… सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि 65 लाख कटे नामों की लिस्ट बूथ-वाइज, जिला-वाइज सार्वजनिक करें। जिसमें काटे गए वोटर के नाम के साथ नाम काटने का कारण भी स्पष्ट करें..। जैसे मौत, माइग्रेशन, अनट्रेसेबल, या डुप्लीकेट रजिस्ट्रेशन…। 

 जिन 65 लाख लोगों के नाम काटे गए उन्हें Claims, Objections और Corrections के लिए 1 अगस्त से 1 सितंबर तक का समय दिया गया…।  30 सितंबर तक की SIR प्रक्रिया में क्लेम्स के आधार पर 21 लाख 53 हजार नाम जोड़े गए और ऑब्जेक्शंस के आधार पर 3 लाख 66 हज़ार अतिरिक्त नाम काटे गए। फाइनल वोटर लिस्ट में कुल 7 करोड़ 42 लाख वोटर्स शामिल किए गए हैं। जबकि कुल 68 लाख 66 हजार लोगों के नाम काट दिए गए हैं। 65 लाख ड्राफ्ट लिस्ट में और 3 लाख 66 हजार फाइनल लिस्ट में…। 68 लाख वोटर्स…! ये कोई छोटी-मोटी संख्या नहीं है…। 

पिछले बिहार इलेक्शन का रिजल्ट बड़ा इंट्रेस्टिंग था…। दर्जनों सीट पर चुनाव बेहद कम अंतर से जीते गए थे…। तेजस्वी यादव ने उस समय भाजपा और अधिकारियों पर धांधली का भी आरोप लगाया था…। लेकिन इस बार सीधे इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया पर आरोप लग रहे हैं। आरोप सिर्फ वोट काटने का नहीं… फेक वोटर्स जोड़ने का भी…। 

The Reporters Collective की रिपोर्ट क्या कहती है?


The Reporters Collective ने SIR पर एक नई रिपोर्ट की है। रिपोर्ट बताती है कि बिहार की फाइनल वोटर लिस्ट में बहुत गड़बड़ियां हैं । कई जगहों एक ही नाम के डुप्लीकेट वोटर्स हैं, तो कई वोटर्स के पते संदिग्ध हैं। Reporters Collective के मुताबिक, बिहार की वोटर लिस्ट में 14 लाख 35 हजार से ज्यादा संदिग्ध डुप्लीकेट वोटर्स हैं। यानी ऐसे लोग जिनके पास दो अलग वोटर आईडी हैं, लेकिन नाम एक है, रिश्तेदार का नाम भी वही है, और उम्र में बस 0 से 5 साल का फर्क…। इनमें से करीब 3 लाख 42 हजार मामले सबसे गंभीर हैं, जहां दोनों आईडी पर उम्र बिल्कुल एक जैसी है। इसके अलावा, हजारों लोगों के पास तीन-तीन वोटर आईडी भी मिले हैं। Reporters Collective के मुताबिक, वोटर लिस्ट में करीब 1 करोड़ 32 लाख वोटर्स ऐसे हैं, जिनके पते या तो फर्जी हैं या मौजूद ही नहीं हैं। वो नोटेशन एड्रेस भी नहीं हैं, जो इलेक्शन कमीशन उन लोगों के लिए देता है, जिनके पास घर नहीं है या जिनके घर का रजिस्टर्ड एड्रेस नहीं है। 

यही नहीं…अलग परिवार, अलग जाति और अलग समुदाय के लोगों को भी एक ही पते पर रजिस्टर्ड किया गया है। सबसे चौंकाने वाला मामला पिपरा असेंबली का है। पिपरा में 505 लोग अलग-अलग परिवार और जाति से होने के बावजूद एक ही फर्जी पते पर वोटर लिस्ट में दर्ज हैं। ऐसे में ECI ज्ञानेश कुमार उस दावे का क्या जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके BLOs घर-घर जाकर एक-एक वोटर को वेरिफाई कर रहे हैं। अगर BLOs ने सच में घर-घर जाकर वोटर वेरिफिकेशन किया, तो इतनी बड़ी गड़बड़ियां कैसे…। क्या इलेक्शन कमीशन के टॉप मोस्ट अधिकारी भी इन गड़बड़ियों में शामिल थे ? क्या जानबूझकर ये सब किया गया है? क्या जानबूझकर फेक वोटर्स जोड़े गए हैं? किसी को फायदा पहुंचाने के लिए? 

Reporters’ Collective की रिपोर्ट हवाहवाई नहीं है। उसने डेटा एनालिस्ट्स की एक टीम के साथ मिलकर बिहार की एक-एक सीट का बारीकी से एनालिसिस किया है। और जमीनी रिपोर्टिंग करके उस डेटा की जांच भी की है..। 1 अगस्त को ड्रॉफ्ट वोटर लिस्ट जारी हुई। Reporters’ Collective ने यहीं से जांच शुरू कर दी। उसे यहीं से ढेरों गड़बड़ियां मिलने लगीं। उसने जांच को आगे बढ़ाया। वाल्मीकिनगर में उसे 5,000 संदिग्ध वोटर्स मिले, जो उत्तर प्रदेश के आस-पास के विधानसभा क्षेत्रों में भी रजिस्टर्ड थे। इसके बाद उसने 3 और विधानसभा क्षेत्रों पिपरा, बगहा और मोतिहारी में जांच शुरू की। यहां उसे 80,000 से ज्यादा ऐसे वोटर्स मिले, जो फर्जी या संदिग्ध पतों पर वोटिंग के लिए रजिस्टर्ड थे। 

रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने जांच के दायरे को और बढ़ाना शुरू किया। उसने 142 विधानसभा क्षेत्रों की ड्राफ्ट वोटर लिस्ट की जांच शुरू की। जो बेहद चौकाने वाली थी। इसमें उसे 5 लाख 56 हजार संदिग्ध मामले मिले। इनमें से 1 लाख 29 हजार सबसे ज्यादा चिंताजनक थे, जहाँ उम्र समेत कई एंट्रीज़ बिल्कुल मेल खाती थी। ग्राउंड पर जा कर वेरिफिकेशन भी किया गया, जिसमें कई वोटर्स को नकली पाए गए। 

इलेक्शन कमीशन ने रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने इन दावों का खंडन किया और कहा कि अगर एरर हैं, तो उन्हें एसआईआर के दूसरे फ़ेज़ में साफ कर दिया जाएगा। दूसरा फ़ेज़ खत्म हो चुका है.. फाइनल वोटर लिस्ट सामने आ चुकी है…। चुनाव आयोग ने पूरे प्रॉसेस को सफल बताते हुए अपनी पीठ थपथपाई है। ECI ज्ञानेश कुमार ने दावा किया कि बिहार वोटरलिस्ट का शुद्धिकरण 22 साल बाद पहली बार हुआ है। लेकिन सच्चाई दावों के उलट है। 

इलेक्शन कमीशन ने बाराचट्टी में मकान नंबर 6 पर 877 वोटर दर्ज किए हैं। मोतिहारी में एक फर्जी पते पर 855 वोटर दर्ज किए हैं। और पर्सा में मकान नंबर 23 पर 853 वोटर दर्ज किए हैं। रिपोर्टर्स कलेक्टिव की टीम ने 243 विधानसभा क्षेत्रों में ऐसे सभी संदिग्ध पतों की लिस्ट तैयार कर रैंकिंग तैयार की। उसे 20 ऐसे उदाहरण मिले जहां एक ही घर के पते पर 650 से अधिक वोटर दर्ज हैं। 


 ड्रॉफ्ट वोटर लिस्ट आने के बाद पिपरा के गलीमपुर गांव में सबसे हैरान करने वाले मामले मिले। यहां 509 वोटर्ज़ अलग-अलग परिवारों और जातियों के एक ही फर्जी पते पर दर्ज थे, और दूसरे फर्जी पते पर 459 वोटर्ज़ ऐसे ही गलत तरीके से जोड़े गए थे। जब किसी मतदाता का घर नंबर नहीं होता, तो ECI को हर परिवार को अलग “कल्पित पता” देना चाहिए, लेकिन यहां सैकड़ों लोगों को एक ही पते पर जोड़ दिया गया, जबकि कई के पास पहले से अलग पते दर्ज थे। फाइनल वोटर लिस्ट आने के बाद Reporters’ Collective दोबारा गलीमपुर पहुंची तो पाया कि अब भी कुछ भी नहीं बदला। फाइनल लिस्ट में अब भी 505 वोटर्ज़ एक फर्जी पते पर, और 442 दूसरे पर दर्ज हैं। शिवनाथ दास, जो 505 वोटर्स में से थे, बोले कि दूसरे फेज में BLOs ने उनकी रिकॉर्ड और असली रहने का पता वेरिफाई नहीं किया। इस दौरान किसी ने हमसे कुछ नहीं पूछा। हमने खुद BLOs से सवाल किए और पूरी मदद की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। 

Reporters’ Collective ने इसपर जिला चुनाव अधिकारी से बात की। उन्होंने कहा कि हमारी जांच में कोई भी फर्जी वोटर नहीं मिला। फर्जी पतों के बारे में पूछने पर कहा कि ये तो पता देने की काल्पनिक संख्या प्रणाली है, जिसका हम सालों से पालन कर रहे। लेकिन ये सच नहीं है, क्योंकि जब वोटर्स के पास हाउस नंबर नहीं होता, तो ECI को हर घर को यूनिक नोटशनल एड्रेस देना होता है। लेकिन यहां सैकड़ों लोगों को एक साथ जोड़ दिया गया, जबकि पहले उनके अलग एड्रेसेस ECI रिकॉर्ड में थे। 

 Reporters’ Collective ने पिपरा के इलेक्टोरल ऑफिसर के दावे की जांच की कि फर्जी वोटर्स हटा दिए गए हैं। पाया कि पिपरा में अब भी 1512 वोटर्स ऐसे हैं जिनके पास डुप्लीकेट वोटर आईडी हैं और सभी डेमोग्राफिक डिटेल्स और उम्र एक जैसी है। उदाहरण के लिए, 21 साल के अंकित कुमार के पास पिपरा की फाइनल लिस्ट में दो वोटर आईडी हैं। दोनों आईडी पर हाउस नंबर 111 और पिता का नाम विनोद राम है। एक आईडी बूथ 338 पर रजिस्टर्ड है और दूसरी पड़ोसी बूथ 339 पर। Reporters’ Collective ने सभी 243 विधानसभा सीटों पर 14 लाख 35 हजार वोटर्स ऐसे पाए जिनके पास दो या ज्यादा वोटर आईडी हैं, और सभी डेमोग्राफिक डिटेल्स मैच करती हैं, उम्र का फर्क सिर्फ 0-5 साल का है। इनमें से 3 लाख 4 हजार मामले सबसे गंभीर हैं, जहां सारी डिटेल्स, उम्र समेत, बिल्कुल एक जैसी हैं। 

चुनाव आयोग शुद्धता की चाहे जितना दावा करे.. लेकिन सच्चाई ये है कि फाइनल वोटर लिस्ट में लाखों संदिग्ध फेक वोटर्स अब भी मौजूद है। एक करोड़ से ज्यादा वोटर्स के पते फर्जी है..। ऐसे में ये सवाल क्यों न उठे कि इलेक्शन कमीशन के दावे फर्जी हैं…। राहुल और तेजस्वी की शंकाएं सच्ची है…। इसका जवाब कौन देगा कि जब वोटर लिस्ट में इतनी भयंकर गड़बड़ियां है तो बिहार इलेक्शन में गड़बड़िया कैसे नहीं होंगी।

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