बिहार: SIR प्रक्रिया में खुलासा 36 लाख मतदाता संपर्क से बाहर, अपने पते पर नहीं मिले

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण(SIR) का काम अब आखिरी दौर में है, लेकिन प्रक्रिया को लेकर ज़मीन पर स्थिति कुछ उलझी हुई है। आयोग की समयसीमा जैसे-जैसे नज़दीक आ रही है, मतदाता, राजनीतिक दल और चुनाव अधिकारी – सभी पर दबाव बढ़ता जा रहा है। चुनाव आयोग के अनुसार, राज्य में अब तक कुल पंजीकृत मतदाताओं में से लगभग 90 प्रतिशत मतदाताओं के फॉर्म प्राप्त हो चुके हैं। हालांकि, आयोग ने यह भी स्वीकार किया है कि 36 लाख से अधिक मतदाताओं को अभी तक उनके दस्तावेज़ नहीं मिल पाए हैं, यानी वे मतदाता जिनके फॉर्म या तो अधूरे हैं या बीएलओ को वापस नहीं मिले। 


SIR प्रक्रिया को 25 जुलाई तक पूरा करने का लक्ष्य

गौरतलब है कि 24 जून 2025 को चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची की व्यापक समीक्षा का आदेश जारी किया था, और इसे 25 जुलाई तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। यह पुनरीक्षण इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि राज्य में आगामी महीनों में विधानसभा उपचुनाव संभावित हैं। साथ ही, विपक्षी दल इस पूरी प्रक्रिया को लेकर सक्रिय और सवालों से लैस नज़र आ रहे हैं। आयोग ने कहा है कि 1 अगस्त को मतदाता सूची का ड्राफ्ट संस्करण प्रकाशित किया जाएगा। इसमें कोई भी नागरिक या राजनीतिक दल अगर किसी नाम में त्रुटि, दोहराव या नाम छूटने की बात उठाना चाहता है, तो 1 अगस्त से 1 सितंबर तक सुधार और आपत्तियों के लिए आवेदन कर सकता है। इन सभी दावों और आपत्तियों की जांच पूरी करके आयोग 30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित करेगा। 

इस प्रक्रिया के तहत जो मतदाता अपने पते पर नहीं मिले, या जिनके फॉर्म BLO को नहीं लौटाए गए, उनकी सूची अब राजनीतिक दलों के ज़िला अध्यक्षों और बूथ स्तर के एजेंटों के साथ साझा की जा रही है। इसका मकसद यह है कि 25 जुलाई तक ऐसे मतदाताओं की स्थिति स्पष्ट हो सके क्या वे स्थानांतरित हो चुके हैं, मृत हैं या फर्जी नामों के तहत दर्ज हैं। चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह इस बार "हर पात्र मतदाता को शामिल करने और हर अपात्र नाम को हटाने" के सिद्धांत पर काम कर रहा है। 

28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में होनी है सुनवाई

इसी बीच, बिहार के राजनीतिक संगठनों ने भी अपने बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दिया है, ताकि छूटे हुए लोगों के फॉर्म एकत्र कर समय पर जमा कराए जा सकें। एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब चुनाव आयोग ने हाल ही में कहा कि बिहार से बाहर रहने वाले प्रवासी मतदाता भी वोट डाल सकेंगे। इसके लिए आयोग ने एक ऑफलाइन फॉर्म प्रक्रिया शुरू की है, ताकि जो लोग काम या पढ़ाई के कारण बिहार से बाहर हैं, वे अपना नाम सही समय पर सूची में दर्ज करा सकें। अनुमान है कि ऐसे मतदाताओं की संख्या करीब एक करोड़ है, लेकिन दस्तावेज़ी प्रक्रिया में अब भी कई लोग पिछड़ रहे हैं। वहीं, डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस पूरी प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। पार्टी का आरोप है कि यह कवायद बीजेपी के राजनीतिक फायदे को ध्यान में रखकर की जा रही है। इस सिलसिले में 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका पर सुनवाई भी निर्धारित है।

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