Supreme Court On ED: 5 साल में 5,000 केस, दोषसिद्धि 10% से कम; ED को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) को सख्त लहजे में चेताया कि एजेंसी को अपनी कार्रवाई कानून के दायरे(Supreme Court On ED) में रखनी होगी। कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, "आप धूर्त की तरह काम नहीं कर सकते।"  टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की तीन-न्यायाधीशों की पीठ पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) के तहत ईडी की गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती की शक्तियों को बरकरार रखने वाले जुलाई 2022 के फैसले की समीक्षा याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।


Supreme Court On ED: केंद्र और ईडी का पक्ष


केंद्र और ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस.वी. राजू ने दलील दी कि ये समीक्षा याचिकाएं विचारणीय नहीं हैं और इन्हें पहले के फैसले के खिलाफ "छिपी हुई अपीलें" बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि "प्रभावशाली बदमाश" कई आवेदन दायर कर जांच को जानबूझकर लंबा खींचते हैं, जिससे ईडी अधिकारियों को जांच पर ध्यान देने के बजाय लगातार अदालत में पेश होना पड़ता है।

जस्टिस भुइयां ने ईडी की कम दोषसिद्धि दर पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा, "आपको कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा। पिछले पांच वर्षों में ईडी ने लगभग 5,000 ईसीआईआर (प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट) दर्ज की हैं, लेकिन दोषसिद्धि दर 10% से भी कम है। 5-6 साल की हिरासत के बाद अगर लोग बरी हो जाते हैं तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?" उन्होंने यह भी कहा कि ईडी की छवि को लेकर अदालत चिंतित है।

एएसजी राजू ने तर्क दिया कि कई बार प्रभावशाली आरोपी केमैन द्वीप जैसे विदेशी अधिकार क्षेत्रों में भाग जाते हैं, जिससे एजेंसी की कार्रवाई बाधित होती है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ पहले ही पीएमएलए की संवैधानिक वैधता बरकरार रख चुकी है। समीक्षा याचिकाओं पर सुनवाई अगले सप्ताह भी जारी रहेगी।

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