
ज्यूडिशियल आदेशों की अवहेलना को अधिकारी मानते हैं उपलब्धि: इलाहाबाद हाई कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस और नागरिक प्रशासन के अधिकारियों को लेकर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि वे न्यायिक आदेशों की अवहेलना को अपराध नहीं, बल्कि उपलब्धि मानते हैं। अदालत ने यह टिप्पणी बागपत जिले में एक मकान को कोर्ट के स्थगन आदेश के बावजूद ध्वस्त किए जाने के मामले में की।
जस्टिस जेजे मुनीर ने बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार टिप्पणी करते हुए कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदेश के कार्यकारी अधिकारियों, विशेषकर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच न्यायिक आदेशों की अवहेलना करने की एक सांस्कृतिक प्रवृत्ति बन गई है। यह चिंताजनक है कि इससे उन्हें अपराधबोध नहीं, बल्कि उपलब्धि का अहसास होता है।”
यह मामला एक याचिकाकर्ता छामा से जुड़ा है, जिनके घर को स्थानीय प्रशासन ने ध्वस्त कर दिया, जबकि हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से 5 मई को आदेश दिया था कि उनके निर्माण को न तो तोड़ा जाए और न ही कोई वसूली की जाए। इसके बावजूद, प्रशासन ने कार्रवाई कर दी। कोर्ट ने इसे “अत्यंत गंभीर और न्यायिक अवमानना” मानते हुए कहा कि इस प्रकार के उल्लंघन को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
याचिकाकर्ता की ओर से अवमानना याचिका दाखिल की गई जिसमें आरोप लगाया गया कि अधिकारियों को कोर्ट का स्थगन आदेश दिखाए जाने के बावजूद उन्होंने मकान गिरा दिया। कोर्ट ने कहा कि तस्वीरों से स्पष्ट है कि अधिकारियों ने आदेश देखे जाने के बाद भी जानबूझकर दूसरी ओर देखा। हाई कोर्ट ने इस पूरे मामले में न्यायिक आदेशों की उपेक्षा को गंभीर चिंता का विषय बताते हुए कहा कि कानून का राज केवल तभी कायम रह सकता है जब राज्य के अधिकारी न्यायालय के आदेशों का सम्मान करें। न्यायालय ने संकेत दिया कि भविष्य में ऐसी अवमानना पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
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