उर्दू को हटाना, 'बिहारी' को जाति बनाना—डीयू एडमिशन फॉर्म पर भड़के शिक्षक संगठन

दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) में अंडरग्रेजुएट (UG) दाखिले की प्रक्रिया 17 जून, 2025 से शुरू हो चुकी है, लेकिन दाखिला पोर्टल लॉन्च होते ही विवाद खड़ा हो गया है। यूजी एडमिशन रजिस्ट्रेशन फॉर्म में 'उर्दू' भाषा को मातृभाषा के विकल्प में शामिल न किए जाने को लेकर शिक्षकों के एक वर्ग ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर ‘इस्लामोफोबिया’ का आरोप लगाया है।


डीयू के प्रमुख शिक्षक संगठन डीयू टीचर्स फेडरेशन (DTF) की पदाधिकारी प्रो. आभा देव हबीब ने आरोप लगाया कि एडमिशन फॉर्म में ‘उर्दू’ जैसी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषा को नजरअंदाज कर दिया गया है, जबकि आश्चर्यजनक रूप से “मुस्लिम” शब्द को मातृभाषा के विकल्प के तौर पर जोड़ दिया गया है, जो न तो कोई भाषा है और न ही संविधान में ऐसा कोई उल्लेख है। प्रो. हबीब ने इसे न केवल भाषिक असंवेदनशीलता बताया, बल्कि आरोप लगाया कि यह जानबूझकर किया गया एक सांप्रदायिक हस्तक्षेप है, जिसे मात्र तकनीकी चूक कहकर नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

प्रो. हबीब ने कहा, "यह न केवल उर्दू भाषा का अपमान है, बल्कि मुसलमानों के प्रति गहरे पूर्वाग्रह और इस्लामोफोबिक सोच को उजागर करता है। क्या विश्वविद्यालय नहीं जानता कि मुसलमान भी हिंदी, बंगाली, मलयालम या किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा को मातृभाषा के रूप में बोलते हैं?" उन्होंने इस मुद्दे पर डीयू प्रशासन से तत्काल माफ़ी मांगने और फॉर्म में सुधार की मांग की है। 

शिक्षक संगठन ने यह भी कहा कि एडमिशन फॉर्म में ‘जाति’ और ‘उपजाति’ को अनुचित रूप से अलग-अलग दर्शाया गया है। इतना ही नहीं, ‘बिहारी’ को एक जाति के रूप में शामिल किया गया है, जो पूरी तरह गलत और आपत्तिजनक है। संगठन का कहना है कि यह साफ दर्शाता है कि फॉर्म तैयार करते समय सामाजिक और संवैधानिक समझ का अभाव रहा।

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