"संयोग या प्रयोग सिर्फ मुसलमानों पर ही क्यों?": वक्फ पर में मनोज झा ने सरकार को घेरा

राज्यसभा में वक्फ बिल पर चर्चा के दौरान राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सांसद मनोज झा ने तीखी प्रतिक्रिया दी और सरकार के इरादों पर सवाल उठाए। उन्होंने अपने संबोधन में देश के मौजूदा माहौल, सामाजिक ताने-बाने और लोकतांत्रिक मूल्यों को केंद्र में रखते हुए कई गंभीर बातें कहीं। मनोज झा ने अपने भाषण की शुरुआत आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के एक वीडियो का जिक्र करते हुए की। उन्होंने बताया कि लालू यादव इस समय एम्स में इलाजरत हैं, लेकिन उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर गलत तरीके से पेश किया गया। उन्होंने कहा कि वीडियो को काट-छाँट कर गलत संदर्भ में प्रसारित किया गया, जो राजनीतिक नैतिकता के खिलाफ है।


देश के मौजूदा माहौल पर उठाए सवाल

उन्होंने कहा कि बंटवारे के बाद देश में ट्रस्ट से जुड़े कई मुद्दे रहे हैं, लेकिन आज के समय में हालात अलग हैं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा— "हम गर्दनों के साथ हैं और वो आरियों के साथ।" उन्होंने कहा कि आज देश में बार-बार आर्थिक बहिष्कार की बातें होती हैं, मस्जिदों के नीचे कुछ तलाशने का प्रयास किया जाता है, जिससे समाज में तनाव और विभाजन बढ़ रहा है। मनोज झा ने प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद की कहानी 'ईदगाह' का जिक्र करते हुए सवाल किया— "क्या कोई बता सकता है कि उस कहानी में दुकानदार हरखू था या हरेंद्र?" उन्होंने कहा कि हमारे समाज में हिंदू-मुस्लिम सह-अस्तित्व की परंपरा रही है, लेकिन आज की राजनीति इस समरसता को खत्म करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने आगे कहा— "इस देश के हिंदुओं को मुस्लिमों की, और मुस्लिमों को हिंदुओं की आदत है। कृपया इस आदत को मत बदलवाइए।"

लोकतंत्र में सबके लिए समान अधिकार की बात

उन्होंने जोर देते हुए कहा कि लोकतंत्र में कोई भी चीज किसी विशेष समुदाय के लिए सौगात या तोहफा नहीं होती। उन्होंने गृहमंत्री अमित शाह के भाषण पर कटाक्ष करते हुए कहा कि— "कल गृह मंत्री को वक्फ का मतलब बताते हुए सुना। उनकी तैयारी गजब की थी। लेकिन यह पहली बार नहीं हो रहा, सुधार पहले भी हुए हैं और आगे भी होंगे।" मनोज झा ने कहा कि देश में संस्थागत गैर-मौजूदगी (Institutional Exclusion) की स्थिति उत्पन्न की जा रही है। उन्होंने कहा कि जब किसी धार्मिक संपत्ति या संस्थान में सुधार की बात होती है, तो सिर्फ एक ही समुदाय को क्यों निशाना बनाया जाता है? "अगर आप वास्तव में सेक्युलर व्यवस्था को मजबूत करना चाहते हैं, तो हर धर्म की संस्थाओं में दूसरे धर्म के लोगों को भी शामिल करें।"

वक्फ संपत्तियों और प्रशासनिक समस्याओं पर विचार

मनोज झा ने वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को लेकर प्रशासनिक जटिलताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि— "आपका कहना है कि 30 वर्षों में केवल 8 मामले सामने आए हैं। लेकिन असली समस्या यह है कि स्थानीय स्तर पर सर्वेक्षण और दस्तावेजीकरण ठीक से नहीं किया जाता।" उन्होंने आगे कहा कि जिला कलेक्टर (डीएम) पहले ही कई जिम्मेदारियों से दबे होते हैं, उन्हें वक्फ से जुड़े मामलों की अतिरिक्त जिम्मेदारी देना व्यवहारिक रूप से मुश्किल है। 

मनोज झा ने कहा कि देश में जातिगत असमानता एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन जब भी जातिगत जनगणना की मांग उठती है, सरकार चुप्पी साध लेती है। उन्होंने पूछा— "भगवान के समक्ष भी जातिगत भेदभाव क्यों बना हुआ है? पूजा-पद्धति का नियंत्रण एक जाति विशेष के हाथ में क्यों है?" उन्होंने कहा कि आज जो निर्णय लिए जा रहे हैं, वे देश के भविष्य को प्रभावित करेंगे। उन्होंने अपील की कि इस मिट्टी पर मुसलमानों का और मुसलमानों पर इस मिट्टी का कर्ज है, इसे तिजारत की नजर से मत देखिए। अपने भाषण के अंत में उन्होंने प्रसिद्ध कवि अदम गोंडवी की पंक्तियों को उद्धृत किया— "कुर्सी के लिए जज़्बात को मत छेड़िए।"

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