
History With Molitics में भारत बंद की कहानी -
दिन 2 April 2018 एक तरफ सड़कों पर लाखों दलित, कोई नेतृत्व नहीं, कोई नेता नहीं, हाथों में नीले झंडे, ज़ुबान पर जय भीम के नारे दूसरी तरफ हाथों में डंडे हथियार और सदियों की रीत टूट जाने का गुस्सा, #HistoryWithMolitics में बात करेंगे उस दिन की जिस दिन की वजह से केंद्र सरकार को रातों-रात सुप्रीम कोर्ट में लगाना पड़ा पेटिशन और जिस दिन की वजह से सुप्रीम कोर्ट को अपना फैसला बदलना पड़ा। 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय आता है जिसमें कहा जाता है कि अब SC ST Act लगने पर भी आरोपी को जमानत मिलने लगेगी, तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी, जो की पहले ऐसा नहीं था। फैसला आने के तुरंत बाद दलित समाज के बीच सोशल मीडिया पर खबर फैल जाती है। खबर यह कि SC ST Act को कमजोर कर दिया गया है, जो समाज के लिए शोषण के अंत का अहम एक्ट बनता जा रहा था।

धीरे-धीरे सुप्रीम कोर्ट का निर्णय दलित समाज के बीच फैलने लगा, धीरे-धीरे दलित समाज में गुस्सा बढ़ता जा रहा था। सभी का यह मानना था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दलित समाज का हनन अब चरम पर आ चुका है। इसके खिलाफ आवाज बुलंद होनी चाहिए। जब आवाज में बुलंद होना शुरू हुई तो यह आवाजें छोटी-छोटी बैठकों में तब्दील हो गई और उन बैठकों में समाज के छोटे-छोटे संगठन शामिल होने लगे। सोशल मीडिया पर यह विरोध इतना हो गया की पता ही नहीं लगा, कब यह मामला गांव गली-चौराहे तक शामिल हो गया। आंदोलन होने के 4 दिन पहले से ही "भारत बंद" का एक पोस्टर पूरे देश में फैले लगा, जिसमें 2 अप्रैल की तारीख थी। फेसबुक, व्हाट्सएप यह पोस्टर वायरल होने लगा और धीरे-धीरे समाज के संगठनों से जुड़े ग्रुपों की DP बन गया। किसी को नहीं पता था कि आंदोलन जमीन पर सफल हो पाएगा कि नहीं किसी को नहीं पता था कि भारत बंद वाकई में इतना कारगार होगा।

लेकिन 1 अप्रैल आते आते समाज और सरकार दोनों को आभाष हो गया था की आन्दोलन बहुत बड़ा होने वाला है। केंद्र सरकार ने 1 अप्रैल की रात को ही निर्णय के खिलाफ़ पेटिशन लगाने का निर्णय लिया, लेकिन काफी देर हो चुकी थी। लोग सुबह सड़कों पर आने को तैयार थे। 2 अप्रैल की सुबह होते ही 10 बजे तक आन्दोलन देश के कोने-कोने तक फैल गया पूरे आंदोलन की SC ST Act कमजोर करने की साजिश बंद करो, जय भीम जय भारत। जैसे-जैसे आंदोलन चलता रहा, राजनीतिक पार्टियों का समर्थन इस आंदोलन को मिलता चला गया। दोपहर के 12 बजे TV में खबर चलने लगती है। भारत बंद के दौरान मध्यप्रदेश ग्वालियर के डबरा इलाके में एक युवक को आंदोलन में गोली लग गई और गोली मारने वाले उस समाज से हैं, जो सदियों से इन वर्गों पर शोषण करते आए हैं। यह खबर आग की तरह सोशल मीडिया पर फैलने लगी जिसके बाद इस भारत बंद ने हिंसक रूप ले लिया।

दलित समाज के खिलाफ़ सड़कों पर स्वर्ण समाज का विरोध देखने को मिला। जिसमें कुल 11 लोगों की मौत हुई जिसमें 2 स्वर्ण समाज के थे। उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश इस भारत बंद आंदोलन का केंद्र बन गया। यह पहला आन्दोलन था जब एक समाज के अधिकार की मांग को लेकर दूसरा समाज उसके विरोध में सड़कों पर था।दलित समाज ने इस भारत बंद को आत्म सम्मान की लडाई माना, जिसका असर यह हुआ सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध केंद्र सरकार ने SC ST (अत्याचार-निवारण) Act 2018 पारित करते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के मूल प्रावधानों को फिर से लागू कर दिया। 2 अप्रैल 2018 के भारत बंद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट कर रख दिया।
यह भी पढ़ें - https://www.molitics.in/article/1165/gujarat-hc-fine-impose-arvind-kejriwal-pm-modi-certificate-case