बिहार वोटर लिस्ट समीक्षा पर संसद में बहस की मांग, मल्लिकार्जुन खड़गे बोले- सरकार टाल रही है चर्चा

कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को केंद्र सरकार पर लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहा कि वह बिहार में जारी ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (एसआईआर) पर संसद में चर्चा से लगातार बच रही है। खड़गे ने चेतावनी दी कि यदि सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर बहस नहीं चाहती, तो इसे लोकतंत्र और संविधान की अवहेलना माना जाएगा। उन्होंने कहा, “एसआईआर पर खुली चर्चा बेहद ज़रूरी है, ताकि हर भारतीय नागरिक के मताधिकार की रक्षा की जा सके। अगर सरकार लोकतंत्र में विश्वास रखती है, तो उसे इस विषय से भागना नहीं चाहिए।”


मल्लिकार्जुन खड़गे ने वोटर लिस्ट पर किया सवाल 


विपक्षी दलों का आरोप है कि बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया पारदर्शिता से दूर है और यह बड़े पैमाने पर लोगों को वोटर लिस्ट से हटाने का जरिया बन सकती है। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियां आशंका जता रही हैं कि इस प्रक्रिया के ज़रिये गरीब, दलित, अल्पसंख्यक और प्रवासी समुदायों के मताधिकार पर चोट की जा सकती है। खड़गे ने कहा, “अगर मतदाता सूची से नाम ही हटा दिए जाएंगे, तो लोकतंत्र किसका बचेगा? यह एक संवैधानिक संकट है और संसद में इस पर व्यापक बहस होनी चाहिए।” मल्लिकार्जुन खड़गे ने केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि उसका इस मुद्दे से दूरी बनाए रखना कई संदेह पैदा करता है। उन्होंने कहा कि चुनाव की पूर्व संध्या पर इस तरह की प्रक्रिया को बिना पारदर्शिता के अंजाम देना संदेहास्पद है और इससे मतदाताओं का भरोसा कमजोर होता है।

विशेष गहन पुनरीक्षण एक प्रक्रिया है जिसके तहत चुनाव आयोग मतदाता सूची का व्यापक पुनरीक्षण करता है। इसका उद्देश्य सूची से डुप्लिकेट, गलत या अपात्र नामों को हटाना और नए योग्य मतदाताओं के नाम जोड़ना होता है।   चुनाव आयोग ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के तहत ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी कर दी है। नई सूची में कुल 7.24 करोड़ मतदाताओं के नाम दर्ज हैं, जबकि 65 लाख से अधिक नामों को हटा दिया गया है। 

आयोग के अनुसार, हटाए गए नामों में अधिकांश वे लोग हैं जो या तो अब इस दुनिया में नहीं हैं या फिर किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित हो चुके हैं। चुनाव आयोग ने यह सूची अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक की है। हालांकि, इस प्रक्रिया को लेकर विवाद भी खड़ा हो गया है, क्योंकि यह रिवीजन चुनाव से महज कुछ महीने पहले शुरू किया गया। विपक्षी दलों ने इस पर गंभीर आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया है कि इसके जरिए गरीबों और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को जानबूझकर सूची से बाहर किया जा रहा है।

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