
SSC Protest: "ये आतंकवादी नहीं शिक्षक हैं, लोकतंत्र के नाम पर लाठीचार्ज"
31 अगस्त 2025, नई दिल्ली। इन तस्वीरों में खदेड़ कर ले जाए जा रहे लोग ना तो आतंकवादी थे, ना चोर थे और ना ही उपद्रवी! ये शिक्षक थे। जिस धरती पर नालंदा जैसे विश्वविद्यालय दुनिया भर में प्रचलित हुए उस ज़मी पर पिछले दशक में शिक्षकों और छात्रों पर जो जुल्म हुआ वो अमृतकाल की असली तस्वीर थी। दिल्ली की सड़कों पर, जंतर मंतर पर तमाम ऐसे आंदोलन हुए जिन्होंने सरकार की कुर्सियाँ धारशाही की हैं चाहे वो JP आंदोलन हो, अन्ना आंदोलन हो या फिर किसान आंदोलन। लेकिन छात्रों से निपटने का जो तरीक़ा पिछले सालों में देखने को मिला वो निंदनीय और घोर आपराधिक था।
SSC के अभ्यर्थी सड़कों पर यूँ ही नहीं उतरे, उन्हें उतारा गया। उन्हें उतारा सरकार की ख़राब की नीतियों ने, पेपर लीक ने, उन्हें उतारा सालों पर पेंडिंग पड़े रेज़ल्ट्स ने, ख़राब keyboards ने, घटिया इग्ज़ैम सेंटर्ज़ ने, वेटिंग लिस्ट की कमी ने, उन्हें सड़कों पर उतारा ग़रीबी ने, बीमार माँ बाप ने, परिवार की ज़िम्मेदारीयों ने और इस भ्रष्ट सिस्टम ने। ये यूँ ही सड़कों पर भूखे प्यासे लाठी डंडे खाने नहीं उतरे हैं, इन्हें उतारा है आयोग की उस नाकामी ने जो ढंग से परीक्षा तक नहीं ले सकी। प्रोटेस्ट के अगले दिन एक अगस्त को भी देश भर से बच्चे जंतर-मंतर अपने अध्यापकों और अपने भविष्य के साथ हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ देने इकट्ठे हुए थे। सवाल कई सारे हैं, जवाब देने वाला कोई नज़र नहीं आता, हालात ऐसे हैं कि बच्चों को एक उम्मीद भी नज़र नहीं आ रही। हमने SSC के छात्रों से बात-चीत की उनकी माँगे सुनीं, और क़रीब से जाना कि समस्या सिर्फ़ SSC selection phase 13 के पेपर में ही नहीं है, Staff selection commission अंदर से सड़ चुका है, मर चुका है।
SSC Protest: अध्यापकों और छात्रों को ऐसे पीटा जा रहा
SSC का ये बुरा हाल कोई नई घटना नहीं है। 2013 का पेपर हो, 2016 में ऑनलाइन पेपर होने के बाद पॉलिसी फ़ेल्यर हो, 2018 का लीक कांड हो या 2019 का नॉर्मलिज़ेशन का मामला हो या वेटिंग लिस्ट की वजह से बाहर होते अभ्यर्थी हों। बार-बार हो रही तकनीकी खामियां हो, टाइपिंग टेस्ट में मिला ख़राब कीबोर्ड हो, etc etc, SSC कई जिंदगियों और सपनों का भक्षक बन चुका है। 2025 में स्थिति बस और भयावह हुई है। जंतर मंतर से कुछ ही मिनटों की दूरी पर है लाल क़िला जहाँ स्वतंत्रता दिवस की तैयारियाँ चल रही हैं, और यहाँ अध्यापकों और छात्रों को ऐसे पीटा जा रहा है जैसे ना जाने कितनी बड़ी माँग कर दी हो, इनसे इतना ही कहा गया है कि एक इस अमृत काल में एक परीक्षा ढंग से करवा लो।
मामला आपको पता ही होगा, SSC के अभ्यर्थी 24 जुलाई को इग्ज़ैम देने सेंटर्स पहुंचे। पहले ही दिन कई सेंटर्स पर परीक्षा रद्द कर दी गई। कंप्यूटर हैंग हो रहे थे, कीबोर्ड काम नहीं कर रहे थे, और माउस अटक रहा था। एक घंटे की परीक्षा में, जहां हर सेकंड कीमती होता है, माउस की खराबी ने छात्रों को मानसिक रूप से तोड़ दिया। 31 जुलाई को बड़ा प्रोटेस्ट हुआ कई छात्रों और अध्यापकों को पुलिस ने डिटेन कर लिया। शाम को कई विडीओज़ वाइरल हुईं और 1 अगस्त को देश के कोने कोने से बच्चों को जंतर मंतर पर इकट्ठा होने के लिए कहा गया। सरकारी नौकरी की तैयारी ज़्यादातर वही बच्चे करते हैं जिनके पास BA MA BSC MSC की डिग्री होती हैं, यानी जिन्हें कोई MNC वाला तो अपने यहाँ नहीं काम देगा, ऐसे में जो अभ्यर्थी सालों साल अपने एक इग्ज़ैम में अपनी जवानी खपा चुका है उसके पास सिवाए सरकारी नौकरी लेने की कुछ नहीं बचता।
बच्चों की शिकायत थी SSC की परीक्षा करवाने वाले नए वेंडर से, पहले SSC की परीक्षाएं Tata Consultancy Services (TCS) जैसी कंपनी आयोजित करती थी। लेकिन इस बार SSC ने टेंडर Eduquity Career Technologies को सौंप दिया। और यहीं से कहानी ने नया मोड़ लिया। Eduquity एक ऐसी कंपनी है, जो पहले ब्लैकलिस्टेड हो चुकी है। लेकिन सवाल अब यहाँ यह उठता है की फिर भी SSC ने इसे इतनी बड़ी जिम्मेदारी क्यों दी? जवाब शायद लागत में छिपा है। सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया गया कि Eduquity को ये टेंडर TCS की तुलना में आधी कीमत पर मिला। लेकिन सस्ता टेंडर मतलब सस्ती व्यवस्था। सेंटर्स पर AC और पंखे तो दूर, बुनियादी सुविधाएं तक नहीं थीं। कुछ सेंटर्स पर तो नीचे गाय भैंस बंधी थी। लेकिन SSC की ख़ामियाँ और छात्रों की शिकायतें यहीं नहीं ख़त्म होतीं।
SSC की परीक्षाओं में सवालों की गुणवत्ता हमेशा से विवाद का विषय रही
SSC की परीक्षाओं में सवालों की गुणवत्ता हमेशा से विवाद का विषय रही है। छात्रों का आरोप है कि हर पेपर में कुछ ना कुछ सवाल गलत होते ही हैं… । ये सवाल या तो गलत जवाबों के साथ होते हैं, या उनके ऑप्शंस में ग़लतियाँ होती हैं। लेकिन इसका हल निकालने की प्रक्रिया और भी शर्मनाक है। अगर कोई छात्र गलत सवाल को चैलेंज करना चाहता है, तो उसे प्रति सवाल 100 रुपये देने पड़ते हैं। यानी, 10 सवाल गलत हैं, तो 1000 रुपये सिर्फ चैलेंज करने के लिए। और अगर सवाल सही साबित हुआ, तो भी पैसा वापस नहीं मिलता। तो इन बच्चों की मांगें क्या क्या है?
पारदर्शी परीक्षा प्रक्रिया, बेहतर सेंटर आवंटन, और सवालों की गुणवत्ता में सुधार। लेकिन इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन का जवाब दिल्ली पुलिस ने लाठीचार्ज और हिरासत से दिया। सबसे दुखद, कुछ दिव्यांग छात्रों को भी इस बर्बरता का सामना करना पड़ा। इतने बड़े पैमाने पर विरोध के बावजूद, SSC और DoPT की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया। 13 अगस्त 2025 से SSC CGL की परीक्षा शुरू होने वाली है, और छात्रों में डर है कि अगर यही हाल रहा, तो उसमें भी वही अराजकता देखने को मिलेगी। छात्रों की मांग साफ है - Eduquity जैसे अविश्वसनीय वेंडर्स को हटाया जाए, सेंटर आवंटन में सुधार हो, गलत सवालों की समस्या खत्म हो, और मिसमैनेजमेंट के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई हो। भारत में आज दुनिया की सबसे बड़ी युवा ताकत है, जो देश की करीब 28 फीसदी आबादी (15-29 साल) का हिस्सा है।
हर साल 1.21 करोड़ नौजवान RRB NTPC, 28 लाख SSC CGL, 10 लाख UPSC, और 6 लाख IBPS PO जैसी परीक्षाओं में मेहनत झोंकते हैं, लेकिन इनका सक्सेस रेट 1 फीसदी से भी कम रहता है। लाखों लड़के-लड़कियां 4-5 साल सरकारी नौकरी की तैयारी में खपा देते हैं। ऊपर से बार-बार पेपर कैंसिल, टेक्निकल गड़बड़ी, और गलत सवाल इनके हौसले तोड़ देते हैं। भारत जैसे विकासशील देश में आज भी सरकारी नौकरी का क्रेज बहुत है, लोग दशक लगा देते है सरकारी नौकरी के पीछे, हमने भी ग्राउंड पर इस बारे में जब अभ्यर्थी से पूछा तो उन्होंने क्या कहा सुनिए। ग्राउंड पर रहते हुए बच्चों से बात करने पर यही समझ में आया कि SSC को इन चीजों पर काम करने की ज़रूरत है: नॉर्मलिज़ेशन की वजह से हो रही ग़लत मार्किंग बंद हो, वेंडर साफ़ सुथरा हो जब UPSC का इग्ज़ैम बिना किसी धांधली के हो सकता है तो SSC का भी हो ही सकता है। वेटिंग लिस्ट लाई जाए जिससे सीट खाली ना छूटे। नोटिफ़िकेशन और result की तारीख़ सुनिश्चित हो जैसे बैंकिंग इग्ज़ैम में होती है। tier 1 के बाद कितने गुने बच्चे tier 2 के लिए सलेक्ट होंगे वो तय हो और ये भी तय हो कि tier 2 के बाद डॉक्युमेंट वेरिफ़िकेशन के लिए कितने गुना बच्चे सलेक्ट होंगे, ऐसा नहीं जैसा 2023 में किया था जब 36000 वेकन्सी आयी थीं , तब डॉक्युमेंट वेरिफ़िकेशन के लिए इग्ज़ैक्ट 36000 लोगों को ही बुलाया था, नतीजा कई हज़ार सीट्स खाली छूट गई थीं जिन्हें डमी वेकन्सी की तरह अगली बार पेश कर दिया गया। अगर वेटिंग लिस्ट भी होती तो कई और परिवारों में ख़ुशी आ सकती थी। इसके बाद टाइपिंग टेस्ट के लिए कीबोर्ड या तो स्मूध हो या फिर बच्चे अपना कीबोर्ड खुद ले कर जाएँ जैसा पहले होता भी था।
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