
CEC विवाद: रिटायर्ड अधिकारियों ने CJI को लिखी चिट्ठी, उठाया निष्पक्षता पर सवाल
देश के 60 पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को पत्र लिखकर एक अहम चिंता जताई है। उन्होंने दावा किया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त की गई सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (CEC) में हितों के टकराव (conflict of interest) की आशंका है, क्योंकि समिति के सदस्य पूर्व में उसी मंत्रालय से जुड़े रहे हैं, जिसने विवादित वन संरक्षण संशोधन कानून, 2023 तैयार किया था।
30 जून को लिखे गए इस पत्र पर कई पूर्व सचिवों, राजदूतों, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और वन सेवा के रिटायर्ड अधिकारियों के हस्ताक्षर हैं। उनका कहना है कि CEC के चार में से तीन सदस्य पूर्व भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी हैं और चौथे सदस्य एक सेवानिवृत्त वैज्ञानिक हैं, ये सभी पहले पर्यावरण मंत्रालय में महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रह चुके हैं।
इनमें से दो सदस्य हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय से विशेष सचिव और डायरेक्टर जनरल ऑफ फॉरेस्ट के पद से रिटायर हुए हैं। पूर्व अधिकारियों का तर्क है कि ये सदस्य नीतियों के निर्माण में सीधे तौर पर शामिल रहे हैं और अब उनसे वन संरक्षण कानून पर निष्पक्ष और स्वतंत्र राय की अपेक्षा करना उचित नहीं होगा।
गौरतलब है कि वन संरक्षण संशोधन अधिनियम, 2023 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस संशोधन से देश में वनों की कटाई को बढ़ावा मिलेगा और पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ सकता है।
पूर्व अधिकारियों ने अपने पत्र में लिखा है कि वर्ष 2002 से 2023 तक CEC में स्वतंत्र विशेषज्ञ शामिल होते थे, जिससे उसकी विश्वसनीयता बनी रहती थी। लेकिन अब समिति में ऐसे सदस्य हैं जो स्वयं उस कानून के निर्माण से जुड़े थे, जिस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। इसलिए उनकी रिपोर्ट की निष्पक्षता संदेह के घेरे में रहेगी।
सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी सुप्रीम कोर्ट की एक तकनीकी सलाहकार इकाई है, जो पर्यावरण और वन संरक्षण से जुड़े मामलों में न्यायालय को तथ्यात्मक रिपोर्ट और सिफारिशें देती है। इसके निष्कर्ष न्यायिक निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए इसकी निष्पक्षता और स्वतंत्रता बेहद अहम मानी जाती है।
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