
न्यायिक पारदर्शिता की नई मिसाल, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया जजों का संपत्ति विवरण
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में न्यायपालिका में पारदर्शिता और जनता के विश्वास को सुदृढ़ करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। भारत के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के सभी मौजूदा जजों—मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना सहित 21 न्यायाधीशों—की संपत्ति और देनदारियों की जानकारी सार्वजनिक कर दी गई है। यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड की गई है, जो देश के न्याय तंत्र में पारदर्शिता की ओर एक बड़ा संकेत है। इन जजों में वे तीन न्यायाधीश भी शामिल हैं जो आने वाले वर्षों में मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में हैं।
यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर कथित नकदी की बरामदगी की घटना सामने आई थी। इस विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट की फुल कोर्ट बैठक में पारदर्शिता और नैतिक जवाबदेही के मुद्दों को गंभीरता से लिया गया और संपत्ति घोषणाओं को सार्वजनिक करने का निर्णय किया गया।
सिर्फ संपत्ति की जानकारी ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्तियों की प्रक्रिया को भी सार्वजनिक कर दिया है। अब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्तियों से जुड़ी संपूर्ण जानकारी – जैसे सिफारिश की तारीख, अधिसूचना जारी होने की तिथि, नियुक्ति की तिथि, सामाजिक पृष्ठभूमि और क्या कोई न्यायाधीश पहले से सेवारत न्यायिक अधिकारी से संबंधित है – सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध है। यह पहल 9 नवंबर 2022 से 5 मई 2025 के बीच की नियुक्तियों तक सीमित है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित कुल 29 नाम अभी भी केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए लंबित हैं। इनमें पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के कार्यकाल में सुझाए गए 17 नाम और वर्तमान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के कॉलेजियम द्वारा भेजे गए 12 नाम शामिल हैं।
उधर, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी मिलने के मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त की गई तीन सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश को सौंप दी है।
यह समिति पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी. एस. संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन की सदस्यता में गठित की गई थी। रिपोर्ट में 14 मार्च को दिल्ली स्थित उनके आवास पर आग लगने और आग बुझाने के दौरान मिली कथित नकदी से जुड़े तथ्यों का विश्लेषण शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 मार्च को ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया था कि जब तक जांच जारी है, तब तक न्यायमूर्ति वर्मा को कोई भी न्यायिक कार्य न सौंपा जाए। चार मई को सौंपी गई यह रिपोर्ट आगे की कार्रवाई के लिए अब मुख्य न्यायाधीश के पास है।
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