
बांग्लादेश में ISKCON पुजारी चिन्मय कृष्ण दास को 5 महीने बाद जमानत, राजद्रोह का आरोप
बांग्लादेश में ISKCON के हिंदू पुजारी चिन्मय कृष्ण दास को आखिरकार पांच महीने बाद जमानत मिल गई है। बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने बुधवार को उन्हें राजद्रोह के आरोप में जमानत दे दी। यह फैसला तब आया जब उन्होंने पिछले साल 25 नवंबर को गिरफ्तार किए जाने के बाद न्यायिक प्रक्रिया के तहत जमानत के लिए आवेदन किया था। उनकी गिरफ्तारी बांग्लादेश के झंडे का अपमान करने के आरोप में हुई थी, जिसके बाद उन पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी ने बांग्लादेश में बड़ी हलचल मचाई थी, और भारत ने इस पर कड़ा विरोध जताते हुए बांग्लादेश सरकार से वहां रह रहे हिंदू समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की थी।
ISKCON के पूर्व नेता चिन्मय कृष्ण दास को ढाका हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया था, और उनकी गिरफ्तारी के बाद बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के लोगों ने व्यापक प्रदर्शन किए थे, जिसमें सरकार के खिलाफ आवाज उठाई गई थी।
गौरतलब है कि बांग्लादेश की अदालत ने पहले उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था, लेकिन बाद में उच्च न्यायालय में उनकी याचिका पर सुनवाई हुई। फरवरी में अदालत ने बांग्लादेश सरकार से यह पूछने को कहा था कि कृष्ण दास को जमानत क्यों नहीं दी जानी चाहिए। चिन्मय कृष्ण दास के वकील ने अदालत में यह तर्क दिया था कि उन्होंने कभी भी बांग्लादेश की अस्मिता या सम्मान को चोट नहीं पहुंचाई है, और उन पर लगाए गए देशद्रोह के आरोप निराधार हैं।
भारत ने इस पूरे घटनाक्रम पर गहरी चिंता जताई थी। विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करते हुए कहा था कि यह घटना उस समय हुई जब बांग्लादेश में हिंदू और अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले बढ़ गए थे, और यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि अपराधी खुलेआम घूम रहे थे, जबकि शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले धार्मिक नेताओं को निशाना बनाया गया था। भारत ने बांग्लादेश सरकार से बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा की गारंटी देने का अनुरोध किया था।
चिन्मय कृष्ण दास की जमानत मिलने से जहां एक ओर उनके समर्थकों ने राहत की सांस ली है, वहीं बांग्लादेश सरकार पर भी यह दबाव बन गया है कि वह अपने अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे। भारत की ओर से बार-बार की गई अपीलों का असर नजर आता है, जिससे बांग्लादेश को यह संदेश मिला है कि धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
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