
इलाहाबाद HC में जजों के रिक्त पदों से जुड़ी याचिका पर सुनवाई अब दूसरी बेंच के करेगी, मुख्य न्यायाधीश हुए अलग
इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों के रिक्त पदों को भरने की मांग को लेकर दाखिल की गई जनहित याचिका पर सुनवाई से मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली ने खुद को अलग कर लिया। इस मामले की सुनवाई अब दूसरी बेंच करेगी। वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश त्रिवेदी द्वारा दाखिल की गई इस जनहित याचिका में दावा किया गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुल 160 जजों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन इन पदों पर काम कर रहे जजों की संख्या आधे से भी कम है। इस कारण हाईकोर्ट में करीब 11 लाख मामले लंबित हैं, जिसके कारण वादकारियों को समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है। याचिका में अधिवक्ताओं शाश्वत आनंद, सैयद अहमद फैजान और सौमित्र आनंद ने इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि राज्य की 24 करोड़ की आबादी के हिसाब से हर 30 लाख लोगों पर केवल एक जज है।
इन जजों के पास लगभग 11 लाख लंबित मामलों की सुनवाई का बोझ है, जिससे औसतन एक न्यायाधीश को 14,623 मामले निपटाने पड़ रहे हैं। यह स्थिति न्यायपालिका की कार्यक्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है, और इससे वादकारियों को अपनी शिकायतों और मामलों की सुनवाई के लिए कई सालों तक इंतजार करना पड़ता है।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि जजों की कमी के कारण न केवल न्यायपालिका पर दबाव बढ़ रहा है, बल्कि लंबित मामलों की संख्या भी निरंतर बढ़ रही है। इससे न सिर्फ वादकारियों की स्थिति खराब हो रही है, बल्कि न्यायाधीशों को भी भारी कार्यभार और मानसिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
ऐसे में, न्यायिक प्रणाली के प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए जजों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है।
याचिका में यह सुझाव भी दिया गया है कि हाईकोर्ट के रिक्त जजों के पदों को शीघ्रता से भरा जाए, ताकि न्यायिक प्रक्रिया को दुरुस्त किया जा सके और न्याय की प्रक्रिया को तेज किया जा सके। इसके बाद, अनुच्छेद 224 ए के तहत रिटायर जजों को नियुक्त कर लंबित मामलों के निस्तारण के लिए उनकी सेवाएं ली जा सकती हैं। इस प्रावधान के तहत, रिटायर जजों को फिर से नियुक्त कर उन मामलों को निपटाने के लिए उनका योगदान लिया जा सकता है, जो लंबित हैं और जिन्हें निपटाने में वर्तमान जजों का काम अत्यधिक बढ़ गया है।
इस पूरे मामले में, याचिका दायर करने वालों का कहना है कि जजों की संख्या में वृद्धि और रिटायर जजों की सेवाओं का समुचित उपयोग करने से न केवल लंबित मामलों की संख्या में कमी आएगी, बल्कि वादकारियों को समय पर न्याय मिलेगा और न्यायपालिका की कार्यक्षमता में भी सुधार होगा।
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