क्या नेपाल में राजतंत्र फिर से क़ायम होगा? राजशाही का समर्थन करने वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (RPP) की रैली में उमड़ा जनसैलाब
नेपाल में एक बार फिर राजतंत्र की मांग जोर पकड़ रही है। राजशाही का समर्थन करने वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (RPP) ने काठमांडू में एक बड़ी रैली आयोजित की, जिसमें बड़ी संख्या में लोग नेपाल का राष्ट्रीय ध्वज लेकर शामिल हुए। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र सिंह ने हाल ही में यह दावा किया है कि वह एक बार फिर देश के लिए सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं। हालांकि, प्रधानमंत्री केपी ओली और नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा का मानना है कि नेपाल का फिर से राजशाही की ओर लौटना संभव नहीं है। इसी तरह, सीपीएन-माओवादी सेंटर के अध्यक्ष पुष्पकमल दहल प्रचंड ने भी कहा है कि ज्ञानेंद्र सिंह को जनता को भ्रमित करना बंद कर देना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि पूर्व राजा को लगता है कि वह लोकप्रिय हैं, तो वह अपनी एक राजनीतिक पार्टी बना सकते हैं और यदि जनता उन्हें मौका देती है, तो वह देश की सेवा कर सकते हैं।
आरपीपी के समर्थकों का कहना है कि नेपाल की सरकार में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है और इस स्थिति में लोकतंत्र को हटाकर राजशाही को फिर से लागू किया जाना चाहिए। नेपाल में 2008 तक राजशाही की व्यवस्था थी, लेकिन उसके बाद काठमांडू के शाही महल को एक संग्रहालय में बदल दिया गया। हाल ही में, पूर्व राजा ज्ञानेंद्र सिंह ने पोखरा में पूर्व राजा वीरेंद्र सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया, जहां बड़ी संख्या में लोगों ने राजशाही के समर्थन में राष्ट्रगान गाया। रिपोर्ट्स के अनुसार, राजशाही की मांग करने वालों में युवाओं की संख्या अधिक है, जो मौजूदा व्यवस्था से नाखुश हैं।
जब नेपाल में राजशाही का अंत हुआ था, तो लोगों को उम्मीद थी कि लोकतंत्र से देश और जनता दोनों का भला होगा। हालांकि, अब नेपाल की जनता इस व्यवस्था से ऊब चुकी है। इस बीच, ज्ञानेंद्र सिंह की लोकप्रियता फिर से बढ़ रही है। सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों और विदेश नीति की विफलताओं के कारण लोगों का मोहभंग हो गया है।
भारत के लिए नेपाल में कम्युनिस्ट शासन का क्या मतलब है?
नेपाल लंबे समय से भारत का सहयोगी रहा है।
राजशाही के दौरान भारत और नेपाल के बीच संबंध काफी मजबूत थे। हालांकि, कम्युनिस्ट शासन के दौरान नेपाल की राजनीति में चीन का समर्थन और भारत विरोधी भावना स्पष्ट रूप से देखी गई है। नेपाल सरकार ने भारत की गोरखा रेजिमेंट में भर्तियां भी रोक दी हैं, जिससे जनता को नुकसान हो रहा है। इस वजह से लोग पुराने दिनों को याद कर रहे हैं, और राजशाही समर्थक इस आक्रोश को आंदोलन में बदलने की कोशिश कर रहे हैं।
नेपाल की अर्थव्यवस्था भी बदहाली का सामना कर रही है।
आरपीपी, जो राजशाही की वकालत करती है, नेपाल की संसद में केवल 14 सीटों के साथ कमजोर स्थिति में है। नेपाल की संसद में कुल 275 सीटें हैं, जिनमें से 165 सीधे चुनाव से और 110 समानुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर भरे जाते हैं। देश की अर्थव्यवस्था संकट में है, और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नेपाल को आर्थिक सहायता रोकने की घोषणा की है। सरकार कर्ज के बोझ तले दबी हुई है, और इस वित्तीय वर्ष में नेपाल पर बाहरी कर्ज लगभग 2 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ चुका है।