Delhi: आशिक अल्‍लाह दरगाह और बाबा फरीद की चिल्लागाह को गिराए जाने का खतरा, ASI पहुँचा SC

दिल्ली के महरौली स्थित संजय वन क्षेत्र में स्थित दो ऐतिहासिक संरचनाएं, आशिक अल्लाह दरगाह और बाबा फरीद की चिल्लागाह, अतिक्रमण के कारण ध्वस्तीकरण के खतरे का सामना कर रही हैं। यह जानकारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने सुप्रीम कोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट में दी है। ये दोनों संरचनाएं 12वीं और 13वीं शताब्दी के ऐतिहासिक स्मारक हैं और इनका धार्मिक महत्व भी है। हर दिन मुस्लिम श्रद्धालु इन दोनों स्थलों पर आते हैं, जहां आशिक अल्लाह दरगाह और बाबा फरीद की चिल्लागाह का महत्व है।


यह रिपोर्ट 17 दिसंबर को जमीर अहमद जुमलाना द्वारा दायर की गई याचिका के जवाब में दाखिल की गई है, जिसमें इन दोनों संरचनाओं को बचाने की मांग की गई थी। याचिका में आरोप है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने इन ढांचों की ऐतिहासिकता का सही मूल्यांकन किए बिना ही इनसे अतिक्रमण हटाने के नाम पर इन्हें ध्वस्त करने की योजना बनाई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 29 जुलाई को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से इन ढांचों की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता की जांच के लिए एक रिपोर्ट मांगी थी। एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये स्थल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं और उनका धार्मिक महत्व भी है। एएसआई और राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA) की एक संयुक्त टीम ने इन दोनों संरचनाओं की पहचान की है, जिनमें एक शिलालेख भी है, जो 1317 ईस्वी में इस संरचना के निर्माण की पुष्टि करता है।

रिपोर्ट में बताया गया कि शेख शहीबुद्दीन (आशिक अल्लाह) सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के सहायकों में से थे, जबकि बाबा फरीदुद्दीन उनके मुख्य शिष्य थे। दोनों स्थल धार्मिक गतिविधियों और ध्यान के स्थान के रूप में महत्वपूर्ण हैं। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि इन संरचनाओं में कई संरचनात्मक परिवर्तन हुए हैं, जिनसे इनका ऐतिहासिक रूप प्रभावित हुआ है। यह कार्य अवैध रूप से किए गए थे और इन स्थानों का मरम्मत या नवीनीकरण सक्षम प्राधिकृत अधिकारियों की अनुमति से ही किया जा सकता है। आशिक अल्लाह दरगाह में एक प्राचीन पिरामिडनुमा छत है, जो हिंदू वास्तुकला से मेल खाती है, और चिल्लागाह में कुछ प्राचीन विशेषताएं बरकरार हैं, जैसे सफेदी की गई दीवारें और लोहे के गेट।

यह स्थान मुस्लिम श्रद्धालुओं के लिए एक धार्मिक स्थल है और यह स्थान धार्मिक भावना और आस्था से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने अब फरवरी में इस रिपोर्ट पर विचार करने का निर्णय लिया है। इस मामले में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है, जिसमें इन संरचनाओं के संरक्षण की मांग की गई है।



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