
लोकसभा में उठी चमार रेजीमेंट बहाल की माँग, क्या है इसका इतिहास
लोकसभा में भारतीय सेना में चमार रेजिमेंट की मांग उठी है। मंगलवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने भारतीय सेना में ‘चमार रेजीमेंट’ की मांग उठाई है। चंद्रशेखर ने दलितों की बात करते हुए कहा, “यह देश हमारा भी है, बावजूद इसके यहाँ घोड़ी पर बैठने पर दूल्हा की हत्या कर दी जाती हैं।” उन्होंने कहा कि अग्निवीर योजना को ख़त्म कर देना चाहिए और भारतीय सेना में ‘चमार रेजिमेंट’ फिर से की जानी चाहिए।
क्या है ‘चमार रेजिमेंट’ और उसका इतिहास
चमार रेजिमेंट उन इकाइयों में से एक थी जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने भारतीय सेना की ताकत बढ़ाने के लिए बनाया गया था। इसका गठन चमार जाति के आधार पर किया गया था। चमार रेजिमेंट के इतिहास के बारे में बात करें तो यह 1 मार्च 1943 को मेरठ छावनी में स्थापित की गई। यह रेजिमेंट अपने गठन से पहले एक साल तक सेकेंड पंजाब रेजिमेंट में ट्रायल के रूप में काम कर रही थी। ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय सेना के 27वीं बटालियन में चमार जाति के जवान भी भर्ती किए गये थे। जब उन्होंने हथियारों की ट्रेनिंग और शारीरिक क्षमताओं में खुद को साबित कर दिया तब स्वतंत्र रूप से चमार रेजिमेंट की स्थापना की गई।
इस रेजिमेंट के गठन के कुछ ही दिनों में दूसरा विश्वयुद्ध तेज हो गया, युद्ध का असर एशिया तक पहुंच गया और ब्रिटिश सरकार ने चमार रेजिमेंट को इस युद्ध उतार दिया। उस समय ब्रिटिश इंडियन आर्मी में दलितों की तीन रेजिमेंट महार, मजहबी और रामदसिया रेजिमेंट मौजूद थी। बाद में चमार रेजिमेंट को भी शामिल किया गया। इन सभी दलित रेजिमेंटों ने दूसरे विश्व युद्ध में भाग लिया।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान चमार रेजिमेंट की फर्स्ट बटालियन को सबसे पहले गुवाहाटी भेजा गया। असम के बाद इस बटालियन को कोहिमा, इम्फाल और बर्मा (वर्तमान म्यांमार) में हो रही लड़ाइयों में तैनात किया गया। चमार रेजिमेंट ने उस दौर की सबसे खतरनाक मानी जाने वाली जापान की सेना से बड़ी बहुदारी से युद्ध लड़ा। दूसरे विश्व युद्ध में इस रेजिमेंट के कुल 42 जवान शहीद हुए। शहीद जवानों के नाम दिल्ली, इंफाल, कोहिमा, रंगून(म्यांमार की पुरानी राजधानी) आदि के युद्ध स्मारकों में दर्ज हैं। चमार रेजिमेंट के सात जवानों को विभिन्न वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यही नहीं, इस रेजिमेंट की फर्स्ट बटालियन को बैटल ऑनर ऑफ कोहिमा अवार्ड भी दिया गया।

चामर रेजिमेंट की इस बहादुरी के बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सिंगापुर सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज(आईएनए) से लड़ने भेजा। लेकिन चमार रेजिमेंट ने भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाली आईएनए से लड़ने से मना कर दिया और चमार रेजिमेंट आईएनए में शामिल हो गयी। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने 1946 में चमार रेजिमेंट को भंग कर दिया। वहीं दूसरे विश्व युद्ध के बाद महार रेजिमेंट को तो बनाए रखा गया, और मजहबी एंड रामदसिया रेजिमेंट का नाम बदलकर सिख लाइट इन्फेंट्री कर दिया गया।
जाति आधारित अन्य रेजिमेंट
दरअसल, रेजिमेंट की व्यवस्था सिर्फ भारतीय थल सेना में ही है। जबकि वायु सेना और नौसेना में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। थल सेना में जाति और क्षेत्र के आधार पर रेजिमेंट बने हुए जो मिलकर पूरी थल सेना बनाते है। वर्तमान में देश में कई रेजिमेंट जाति आधारित है जैसे महार, राजपूताना, राजपूत, जाट, महार और डोगरा।
- राजपूत रेजिमेंट जिसकी शुरुआत 1778 में बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 24वीं रेजिमेंट के गठन के साथ हुई थी। रेजिमेंट की पहली बटालियन का गठन 1798 में हुआ था। इस रेजिमेंट में राजपूत, गुर्जर और मुस्लिम को शामिल किया जाता है।
- राजपूताना रेजिमेंट या राजपूताना राइफल्स की स्थापना 1775 में की गई थी, जब तात्कालिक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजपूत लड़ाकों की क्षमता को देखते हुए उन्हें अपने मिशन में भर्ती कर लिया। यह भारतीय सेना का सबसे पुराना राइफल रेजिमेंट है। इस रेजिमेंट में राजपूत और जाट को बराबर हिस्सों में बांटा जाता है। लेकिन कुछ यूनिट में अहीर, गुर्जर और मुसलमानों को भी शामिल किया गया है।
- महार रेजिमेंट की स्थापना ब्रिटिश इंडियन आर्मी ने 1815 में की थी। इस रेजिमेंट में महाराष्ट्र और कर्नाटक के महार जाति के लोगों को शामिल किया गया था। लेकिन वर्तमान में इस रेजिमेंट में मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार की कई जातियों को भी शामिल किया जाता है।
- डोगरा रेजिमेंट भारतीय सेना का एक डोगरा पहाड़ी इलाकों के लोगों का सैन्य-दल है। डोगरा रेजिमेंट का मुख्यालय फैजाबाद उत्तर प्रदेश में स्थित है। इसमें मुख्यत हिमाचल, जम्मू और पंजाब के लोग भर्ती किया जाता है। इस रेजिमेंट की स्थापना 1877 में हुई।
- जाट रेजिमेंट की स्थापना ब्रिटिश इंडियन आर्मी द्वारा 1795 में की गई। इस रेजिमेंट ने 1839 से 1947 तक लगभग 19 युद्ध जीते। आज़ादी के बाद भी पांच युद्ध लड़े और जीते।

जाति के आधार पर बनी किसी रेजिमेंट में जाति के आधार पर रिक्रूटमेंट होता तो है, हालांकि ऐसा भी नहीं है कि किसी विशेष जाति के लोग ही एक जाति की रेजिमेंट में भर्ती हो सकते हैं। दरअसल इन रेजिमेंट में कई जाति के लोगों को भी शामिल किया जाता है। जैसे देखा जाए तो राजपूताना राइफल्स में राजपूत के अलावा जाट भी शामिल हो सकते हैं उसी तरह जाट रेजिमेंट में जाट के अलावा अन्य समाज के लोग भी हो सकते हैं। हालांकि भारतीय सेना की दो रेजिमेंट सिख रेजिमेंट और गोरखा रेजिमेंट में सिर्फ विशेष जाति को ही भर्ती किया जाता है।
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