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"शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार": सुप्रीम कोर्ट ने घर खरीदारों के खिलाफ मानहानि के मामले को रद्द किया

 18 Apr 2025

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (17 अप्रैल, 2025) को एक अहम फैसले में कहा कि यदि घर खरीदार बिल्डरों के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से अपनी शिकायतें जाहिर करते हैं, तो यह उनके संवैधानिक अधिकार के दायरे में आता है और इसे आपराधिक मानहानि नहीं माना जा सकता। न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों को आपराधिक रंग देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और ऐसे प्रयासों को "शुरुआत में ही रोक देना चाहिए।" 


पीठ ने कहा, “बिना किसी आपत्तिजनक या अपमानजनक भाषा के, कानून का उल्लंघन किए बिना शांतिपूर्ण विरोध करना उपभोक्ताओं का अधिकार है — ठीक वैसे ही जैसे विक्रेता को वाणिज्यिक अभिव्यक्ति का अधिकार प्राप्त है।” यह टिप्पणी उस मामले के दौरान सामने आई जिसमें कुछ घर खरीदारों ने एक डेवलपर की सेवाओं से असंतुष्ट होकर बैनर लगाए थे, जिन पर बिल्डर ने आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया था।

पीठ ने अपने फैसले में कहा कि प्रदर्शन पूरी तरह शांतिपूर्ण था और घर खरीदारों ने कहीं भी आपत्तिजनक या असभ्य भाषा का इस्तेमाल नहीं किया। अदालत ने कहा, “यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी रेखा को पार किया है। उन्होंने केवल अपनी वैध शिकायतों को सार्वजनिक रूप से जाहिर किया है। अदालत ने विशेष रूप से यह भी उल्लेख किया कि प्रदर्शन के दौरान प्रयुक्त शब्द संयमित और उद्देश्यपूर्ण थे, जिनमें “धोखाधड़ी”, “गबन” या अन्य आपराधिक संकेत देने वाले शब्दों का उपयोग नहीं किया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि व्यवसायिक संबंधों में संवाद और शिकायत की भाषा में कुछ सीमा तक छूट होनी चाहिए, बशर्ते वह सद्भावना पर आधारित हो। "बैनर में जिन बिंदुओं को उठाया गया, वे खरीदारों की वास्तविक चिंताओं को दर्शाते हैं। ऐसे विरोध को अनुच्छेद 19(1)(a), (b), और (c) के तहत अभिव्यक्ति, शांतिपूर्ण सभा और संघ बनाने के अधिकार का हिस्सा माना जाएगा।

यह मामला तब शुरू हुआ जब बिल्डर ने आरोप लगाया कि कुछ घर खरीदारों ने "झूठे और अपमानजनक" बयानों वाले बैनर लगाकर उनकी छवि को नुकसान पहुँचाया है। इसके आधार पर मुंबई की बोरीवली मजिस्ट्रेट अदालत ने 4 अक्टूबर 2016 को आपराधिक समन जारी किया था। इसके खिलाफ घर खरीदारों ने पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन राहत नहीं मिली। अंततः उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। अब सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए समन और मानहानि की कार्रवाई को खारिज कर दिया कि यह मामला पूरी तरह से भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अपवाद 9 और संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में आता है।