सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस भूषण आर. गवई को देश के अगले मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India – CJI) के तौर पर नियुक्त किए जाने की संभावना प्रबल हो गई है। मौजूदा मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना, जिनका कार्यकाल 13 मई 2025 को समाप्त हो रहा है, ने परंपरा के अनुरूप जस्टिस गवई के नाम की सिफारिश कानून मंत्रालय को भेज दी है।
भारत के संवैधानिक प्रावधानों और न्यायिक परंपराओं के अनुसार, वर्तमान मुख्य न्यायाधीश ही अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करते हैं, जिसे बाद में केंद्र सरकार और अंततः राष्ट्रपति की मंजूरी मिलती है। इस प्रक्रिया का पालन करते हुए, कानून मंत्रालय ने औपचारिक रूप से जस्टिस खन्ना से उत्तराधिकारी का नाम मांगा था, जिसके जवाब में उन्होंने जस्टिस गवई का नाम प्रस्तावित किया।
यदि राष्ट्रपति भवन से मंजूरी मिल जाती है, तो जस्टिस भूषण आर. गवई 14 मई 2025 को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। हालांकि उनका कार्यकाल अपेक्षाकृत छोटा होगा—लगभग छह महीने का—क्योंकि वे 24 नवंबर 2025 को 65 वर्ष की आयु पूर्ण करने पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
जस्टिस गवई को 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। उनका जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ था। वे दिवंगत आर.एस. गवई के पुत्र हैं, जो न केवल एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता थे बल्कि बिहार और केरल के राज्यपाल जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी आसीन रह चुके थे।
जस्टिस भूषण गवई ने अपने न्यायिक जीवन की शुरुआत 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में की थी। दो साल बाद, 12 नवंबर 2005 को उन्हें स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उन्होंने 15 वर्षों से अधिक समय तक मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी पीठों में न्यायिक कार्य किया। अपने न्यायिक करियर में उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की और अपने फैसलों से भारतीय न्याय व्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान दिया।
जस्टिस गवई का मुख्य न्यायाधीश पद के लिए चयन सामाजिक प्रतिनिधित्व के दृष्टिकोण से भी ऐतिहासिक माना जा रहा है। वे सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाले केवल दूसरे अनुसूचित जाति (SC) समुदाय से न्यायाधीश हैं। उनसे पहले जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन ने यह उपलब्धि हासिल की थी, जो 2010 में सेवानिवृत्त हुए थे। इस पृष्ठभूमि से यह संकेत मिलता है कि न्यायपालिका में सामाजिक समावेशिता की दिशा में भारत ने एक और कदम आगे बढ़ाया है।