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उत्तर प्रदेश में 8 करोड़ असंगठित श्रमिक ‘बेसहारा’, नहीं है सरकार के पास कोई योजना

 10 Apr 2025

उत्तर प्रदेश की जनसंख्या विश्व के कई देशों से अधिक है। लेकिन जनसंख्या के एक बड़े हिस्से की सुध लेने वाला कोई नहीं है। उत्तर प्रदेश में देश के कुल पंजीकृत असंगठित श्रमिकों का लगभग 27.5 फीसदी मौजूद है। इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद राज्य सरकार के पास इन्हें सुविधा देने के लिए कोई योजना नहीं है। भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि देश में 30.68 करोड़ से असंगठित श्रमिक हैं। इसमें से सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में करीब 8 करोड़ 38 लाख श्रमिक सरकार के ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं। देश के विकास मॉडल में विकास की क्या परिभाषा है ? क्या उद्योगपति या किसी खास वर्ग के विकास के आधार पर देश को विकासशील या विकसित घोषित किया जा सकता है। डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म द वायर ने RTI एक्ट के तहत सरकार की तरफ से असंगठित श्रमिकों के लिए चलाई जा रही योजनाएं जानने के लिए याचिका दायर की। 


इस याचिका में UP सरकार के सामाजिक सुरक्षा बोर्ड विभाग से बीते 4 सालों में असंगठित श्रमिकों के लिए चल रही योजनाएं और खर्च का ब्यौरा मांगा गया। याचिका के जवाब में बताया कि बीते तीन वित्त वर्षों में हर साल 112 करोड़ रुपए और 2024- 25 में 92 करोड़ रुपए विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित किए गए। लेकिन ताज़्जुब की बात है कि धनराशि खर्च नहीं हो पाई क्योंकि सरकार असंगठित श्रमिकों के लिए कोई भी योजना ही नहीं चलाती है। ग़ौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के पंजीकरण और उनके लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की जिम्मेदारी राज्य सामाजिक सुरक्षा बोर्ड के पास है। यानी सरकार के पास विभाग भी है, पैसे भी है, लेकिन कोई योजना नहीं है। याचिका में अगला सवाल था कि क्या उत्तर प्रदेश के असंगठित श्रमिकों के लिए घोषित योजनाओं की कोई प्रचार प्रसार की व्यवस्था है ? यदि हां, तो इसके लिए उपरोक्त 4 वर्षों में कितना बजट आवंटित हुआ और कितना खर्च हुआ? विभाग ने जवाब दिया कि वित्त वर्ष 2021- 2022 में पांच लाख रुपए और 2022- 23,2023- 24,2024- 25 में सात लाख 80 हजार रुपए योजनाओं के प्रचार प्रसार में आवंटित तो हुए लेकिन खर्च नहीं हुए। 

आरटीआई में अगला सवाल पूछा था कि इन वित्त वर्षों में श्रम विभाग द्वारा असंगठित क्षेत्र के कितने श्रमिकों से आर्थिक मदद के आवेदन प्राप्त हुए और कितने श्रमिकों की मदद की गई? जवाब आया कि जिम्मेदार विभाग को कोई भी ऐसा आवेदन प्राप्त नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या के लगभग 34.91% लोगों के लिए सरकार के पास कोई योजना ही नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2025 में अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी 412 रुपए, अर्ध-कुशल श्रमिक की 463 रुपए और कुशल श्रमिक की 503 रुपए है। एक श्रमिक की आर्थिक स्थिति को बताने के लिए ये आंकड़े काफी है। एक आम श्रमिक की बुनियादी जरूरत भी इन आंकड़ों की संख्या पूरी नहीं कर सकती। वहीं असंगठित क्षेत्र के महिला श्रमिकों की बात करें तो कुल श्रमिकों की 53 प्रतिशत उनकी संख्या है। उन्हें काम का मेहनताना औसत 200 रुपए मिलता है। यानी, उत्तर प्रदेश की महिला श्रमिक छह से आठ हजार रुपये प्रतिमाह में काम करने को विवश हैं। वहीं, पुरुषों का औसत मासिक वेतन दस से ग्यारह हजार के आस-पास पहुंचता है। ये सरकार की विफलता है या गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है की राज्य की इतनी बड़ी आबादी के लिए न्यूनतम वेतन तक सुनिश्चित कराने के लिए प्रदेश के पास कोई योजना नहीं है। सरकार के इस नकारापन का फायदा बड़े बिल्डर्स और ठेकेदार भी उठाते हैं ऐसा श्रमिक की मजदूरी कम करके किया जाता है। इससे साफ़ ज़ाहिर है कि सरकार के पास पूछे गए सवालों का कोई ज़वाब नहीं है। विकास के रास्ते शायद सरकार के कागजों में इतनी बड़ी आबादी तक नहीं पहुंचते हैं।