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वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट में 16 अप्रैल को होगी अहम सुनवाई
10 Apr 2025

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 16 अप्रैल को सुनवाई करेगा। इस अहम मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ करेगी। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड की गई केस लिस्ट के अनुसार, यह मामला सुनवाई के लिए आइटम नंबर 13 के रूप में सूचीबद्ध है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने इस मामले में पहले ही सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर यह आग्रह किया है कि अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली किसी भी याचिका पर निर्णय लेने से पहले सरकार का पक्ष अवश्य सुना जाए। कानून की प्रक्रिया में कैविएट दाखिल करना एक एहतियाती कदम होता है, जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि संबंधित पक्ष की बात सुने बिना कोई प्रतिकूल आदेश न दिया जाए।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, जिसे हाल ही में संसद ने व्यापक बहस के बाद पारित किया और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दी, अब विभिन्न राजनीतिक दलों, संगठनों और नागरिक समूहों के निशाने पर आ गया है। इस अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अब तक कई याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं, जिनमें यह दावा किया गया है कि यह मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और इमरान प्रतापगढ़ी, आप विधायक अमानतुल्लाह खान, आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद, समाजवादी पार्टी के सांसद जिया उर रहमान बर्क, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, और एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) सहित कई संगठनों और नेताओं ने इस कानून को संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने भी इस अधिनियम को चुनौती दी है, जिसमें इसे मनमाना, भेदभावपूर्ण और बहिष्कारी करार दिया गया है। उनकी दलील है कि अधिनियम का स्वरूप न केवल संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत है, बल्कि यह धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता में सरकार के हस्तक्षेप को भी बढ़ावा देता है। बिहार से RJD के राज्यसभा सांसद मनोज झा और फैयाज अहमद, तथा विधायक मुहम्मद इज़हार असफी ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उनका कहना है कि यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सरकार को अत्यधिक अधिकार प्रदान करता है, जिससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक स्वायत्तता खतरे में पड़ सकती है।
तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी DMK ने भी सांसद ए राजा के माध्यम से इस अधिनियम को चुनौती दी है। ए राजा वक्फ संशोधन विधेयक पर बनी संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य भी थे। उनकी याचिका में तर्क दिया गया है कि यह अधिनियम मुस्लिम धर्मस्थलों के प्रबंधन पर ऐसे प्रतिबंध लगाता है, जो अन्य धर्मों के लिए लागू नहीं होते, जिससे यह साफ भेदभाव का मामला बनता है।