गुड़ी पड़वा के मौके पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने मराठी भाषा के सम्मान को लेकर जोरदार संदेश दिया था। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से आह्वान किया था कि राज्य में मराठी भाषा के अपमान को बर्दाश्त न किया जाए और जहां जरूरत हो, वहां सख्त रुख अपनाया जाए। उन्होंने यह भी कहा था कि बैंकों सहित सभी संस्थानों में मराठी भाषा में कामकाज सुनिश्चित कराया जाए। यहां तक कि उन्होंने मराठी न बोलने वालों को थप्पड़ मारने तक की बात कही थी।
हालांकि, महज एक सप्ताह के भीतर ही राज ठाकरे ने इस आंदोलन को बंद करने की अपील कर दी है। एक पत्र के माध्यम से उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देते हुए लिखा, “आपने मराठी भाषा के सम्मान के लिए जो पहल की, वह सराहनीय है। आपने बैंक शाखाओं में जाकर मराठी में काम करने की मांग की और यह जागरूकता फैलाने का प्रभावी कदम था।” उन्होंने आगे कहा, “अब यह आंदोलन रोक दिया जाना चाहिए। समाज में संदेश पहुंच चुका है कि मराठी भाषा का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आगे की जिम्मेदारी सरकार की है कि वह रिजर्व बैंक के नियमों का पालन कराए।”
गैर-मराठियों को बनाया गया निशाना
राज ठाकरे के बयान के बाद राज्य के कई हिस्सों में गैर-मराठी भाषियों को निशाना बनाए जाने की घटनाएं सामने आईं। इन घटनाओं ने राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी। बैंक यूनियनों ने इस मामले को गंभीर बताते हुए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर चिंता जाहिर की कि बैंक कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है, जिससे उनका काम प्रभावित हो रहा है।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि पार्टी मराठी बनाम गैर-मराठी के मुद्दे पर सतर्क है। उनका कहना था कि “उत्तर भारतीय वोटर्स पार्टी का एक अहम आधार हैं। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। अगर महाराष्ट्र में इस तरह की घटनाएं जारी रहीं, तो इसका सीधा असर पार्टी की छवि और वोट बैंक पर पड़ सकता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय समुदाय राज्य की संस्कृति में घुलमिल गया है, और वे गणेश उत्सव जैसे पर्वों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। ऐसे में उनका निशाना बनना अनुचित और चिंताजनक है।
मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) से जुड़े सूत्रों के अनुसार, उद्योग जगत की ओर से भी राज्य सरकार के पास इस तरह के घटनाक्रमों को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी। उनका कहना था कि यदि मराठी बनाम गैर-मराठी का टकराव बढ़ता है, तो यह राज्य के समग्र निवेश माहौल को प्रभावित कर सकता है। इसके बाद ही यह एहसास हुआ कि आंदोलन को रोकना जरूरी है, ताकि महाराष्ट्र की साख और औद्योगिक माहौल पर कोई नकारात्मक असर न पड़े।