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मुआवजे के लिए 9 साल का संघर्ष – सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को लताड़ा, कहा- ब्याज समेत दें 1 करोड़ रुपये

 25 Mar 2025

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को कड़ी फटकार लगाई है, जिसने एक डॉक्टर की विधवा को मुआवजा देने में नौ साल का विलंब किया। महिला 2016 से अपने हक के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही थी, जब उनके पति की ड्यूटी के दौरान हत्या कर दी गई थी। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने उत्तराखंड सरकार की उदासीनता पर गहरी नाराजगी जताई। कोर्ट ने आदेश दिया कि महिला को देरी के कारण जुर्माने समेत एक करोड़ रुपये की राशि दी जाए।


2016 में उत्तराखंड सरकार ने मृत डॉक्टर के परिवार को 50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की थी। हालांकि, नौ साल बीत जाने के बावजूद यह राशि परिवार को नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि पीड़ित परिवार को अपने हक के लिए इतनी लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 2018 में सरकार को डॉक्टर की विधवा को 1.99 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था, जिसमें 7.5% वार्षिक ब्याज भी शामिल था। साथ ही, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मेडिकेयर सर्विस पर्सन्स एंड इंस्टीट्यूशन एक्ट, 2013 के तहत अतिरिक्त पेंशन लाभ देने का भी आदेश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने तय की नई मुआवजा राशि

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने दावा किया कि अब तक पीड़ित परिवार को 11 लाख रुपये दिए जा चुके हैं। साथ ही, 2021 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद परिवार को ग्रेच्युटी, जीपीएफ, फैमिली पेंशन, जीआईएस और छुट्टियों के पैसे का भुगतान किया गया था। मृतक डॉक्टर के बेटे को स्वास्थ्य विभाग में जूनियर असिस्टेंट के पद पर भी नियुक्ति दी गई थी। इन दलीलों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पहले निर्धारित 1 करोड़ रुपये की मुआवजा राशि से 11 लाख रुपये घटाकर 89 लाख रुपये कर दी। 20 अप्रैल 2016 को महिला के पति को जसपुर के कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में ड्यूटी के दौरान कुछ हमलावरों ने गोली मार दी थी। परिवार का कहना है कि अगर सरकार ने 2016 में ही 50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान कर दी होती, तो उन्हें नौ साल तक न्याय के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को निर्देश दिया कि बिना किसी और देरी के परिवार को पूरी मुआवजा राशि ब्याज समेत अदा की जाए। कोर्ट ने कहा कि सरकार की यह लापरवाही न सिर्फ पीड़ित परिवार के साथ अन्याय है, बल्कि यह प्रशासनिक उदासीनता का भी स्पष्ट उदाहरण है।