यह एक महत्वपूर्ण और जटिल मामला था, जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को समाप्त कर दिया। उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका को ‘गलत’ बताते हुए खारिज कर दिया, जिसमें एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पूर्व महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार के समय किए गए फैसले को चुनौती दी गई थी। सितंबर 2022 में इस फैसले के तहत उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार द्वारा विधान परिषद (MLC) के लिए की गई 12 नामांकनों को वापस लेने का निर्णय लिया गया था।
चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस अतुल बोरकर की खंडपीठ ने यह साफ कर दिया कि इस मामले में याचिका खारिज की जा सकती है। यह निर्देश दिया गया कि राज्यपाल का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वह समय के भीतर किसी भी नामांकन को स्वीकार करें या उसे वापस लें। इस केस का विवाद तब और बढ़ गया जब सत्ता परिवर्तन के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली नई सरकार ने राज्यपाल को एक पत्र लिखकर पूर्व सरकार द्वारा की गई सिफारिशों को रद्द करने का अनुरोध किया। इसके बाद, राज्यपाल ने 5 सितंबर 2022 को इस सूची को स्वीकार किया और उसे मुख्यमंत्री कार्यालय को वापस कर दिया।
कोल्हापुर नगर निगम के क्षेत्र प्रमुख सुनील मोदी ने इस प्रक्रिया को चुनौती दी, जो शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) से संबंधित हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर शिकायत दर्ज कराई कि राज्यपाल ने एक साल से अधिक समय तक नामांकन पर कोई निर्णय नहीं लिया, जो उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी थी। इसके अलावा, हाल ही में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों की घोषणा से ठीक पहले सात नए एमएलसी नामांकन को मंजूरी दी, जिस पर सुनील मोदी ने फिर से आपत्ति जताई। उन्होंने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया न्यायालय के फैसले के साथ अनुचित थी।
हाई कोर्ट के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल अंतुरकर ने इस मुद्दे पर जोर देते हुए कहा कि राज्यपाल को कोर्ट के निर्देशों का पालन करना चाहिए था। अंतुरकर ने यह भी कहा कि यह मामला एक जिम्मेदारी की मांग करता था, जिसे राज्यपाल ने नजरअंदाज किया। इस पूरे मामले में महाधिवक्ता डॉ. बीरेंद्र सराफ ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि मंत्रिमंडल किसी भी समय सिफारिशें कर सकता है या वापस ले सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि आज राज्यपाल के समक्ष कोई लंबित सिफारिश नहीं है, इसलिए याचिकाकर्ता अब यह नहीं कह सकता कि यह प्रक्रिया हमेशा जारी रहेगी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अंततः इस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, यह स्पष्ट करते हुए कि इस मामले में कोई गलत प्रक्रिया नहीं अपनाई गई है और राज्यपाल का यह निर्णय उचित था।