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सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालयों में जातिगत भेदभाव पर UGC से शिकायतों का ब्योरा मांगा

 04 Jan 2025

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से उच्च शिक्षण संस्थानों में समान अवसर प्रकोष्ठों की स्थापना और 2012 के यूजीसी विनियम के तहत प्राप्त शिकायतों और उनकी जांच पर जानकारी मांगी। कोर्ट ने यूजीसी से यह डेटा प्रस्तुत करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह सुनवाई जातिगत भेदभाव के कारण आत्महत्या करने वाले छात्रों, रोहित वेमुला और पायल तड़वी की माताओं द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर हो रही थी। इस याचिका में उच्च शिक्षा संस्थानों में जातिगत भेदभाव के आरोप लगाए गए थे। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने यूजीसी को चार सप्ताह में जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।


याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने अदालत में तर्क रखा कि 2012 में लाए गए नियमों का उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव को समाप्त करना था, लेकिन इसके क्रियान्वयन में असमर्थता व्यक्त की गई। यूजीसी के वकील ने जवाब में कहा कि नए नियम बनाए गए हैं, लेकिन अदालत ने आयोग से इसे अधिसूचित करने और रिकॉर्ड में दर्ज करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही इंदिरा जयसिंह ने उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिवाद के कारण हुई आत्महत्याओं की संख्या का जातिवार ब्यौरा भी मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर सुनवाई करने का आश्वासन दिया और यह संकेत भी दिया कि न्यायालय मामले में एक-एक कदम उठाएगा।

गौरतलब है कि रोहित वेमुला, जो हैदराबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रहे थे, ने 2016 में जातिगत भेदभाव के चलते आत्महत्या कर ली थी। वहीं, पायल तड़वी, जो मुंबई के बीवाईएल नायर अस्पताल में डॉक्टर थीं, ने 2019 में तीन सहकर्मियों द्वारा उत्पीड़न का शिकार होने के बाद आत्महत्या की थी। दोनों ही पीड़ित अनुसूचित जाति/जनजाति से थे।

2019 में दोनों पीड़ितों की माताओं ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक तंत्र की स्थापना की मांग की गई थी। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया था कि एससी/एसटी समुदाय के छात्रों के खिलाफ जातिवाद अब भी व्याप्त है और मौजूदा नियमों और विनियमों का पालन ठीक से नहीं हो रहा है। याचिकाकर्ताओं ने सभी विश्वविद्यालयों और संस्थानों में समान अवसर प्रकोष्ठों की स्थापना की भी मांग की थी।