महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रदेश के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत सकी है। ऐसे में MNS पार्टी का चुनाव चिन्ह (रेलवे इंजन) और क्षेत्रीय पार्टी का दर्ज़ा खो सकती है। 2009 में पार्टी ने विधानसभा की 13 सीटें जीती थी, लेकिन इसके बाद 2014 और 2019 में पार्टी सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। हालाँकि, मुंबई के भीतर MNS को 14 प्रतिशत मत पड़े हैं, जबकि कुल वोट 1.55 प्रतिशत है। वहीं, इन मतों ने एकनाथ शिंदे की शिवसेना को काफी नुकसान पहुंचाया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, विधानसभा के इस चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी ने प्रो-हिंदुत्व मराठी मतों को अपनी ओर खींचा है। शिवसेना से जुड़े कार्यकर्ता ने बताया कि एमएनएस ने उनकी पार्टी को 10 सीटों पर नुकसान पहुंचाया है, जिसकी वज़ह से उसके उम्मीदवार हार गए। यही कारण है कि शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवारों और शिंदे गुट के उम्मीदवारों के बीच जीत का अंतर काफी कम रहा।
MNS के प्रदर्शन पर राज ठाकरे ने क्या कहा
MNS प्रमुख राज ठाकरे ने चुनाव के परिणामों को अविश्वसनीय बताया है। 2024 का विधानसभा का चुनाव राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे के लिए बुरी याद बनकर रह गया है। अमित ने माहिम विधानसभा का चुनाव लड़ा था जहाँ वे तीसरे स्थान पर रहे। राजनीति के जानकारों का कहना है कि चुनाव आयोग का नियम कहता है कि किसी भी पार्टी को अपना चुनाव चिन्ह बनाये रखने के लिए कम से कम आठ प्रतिशत वोट हासिल करना होता है। अगर पार्टी के पास एक से दो सीट है तो छह प्रतिशत वोट, और तीन सीट है तो तीन प्रतिशत वोट हासिल करनी होती है।
महाराष्ट्र में चुनाव के नतीजे
उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) ने 20 सीटें जीती हैं, जिनमें से 10 पर जीत का अंतर MNS उम्मीदवार को मिले मतों से कम है। शिवसेना के कार्यकर्ता ने बताया कि इसमें वर्ली, बांद्रा पूर्व और माहिम जैसी चर्चित सीटें शामिल हैं। इनके अलावा वाणी, विक्रोली, जोगेश्वरी पूर्व, डिंडोशी, वर्सोवा, कलिना और गुहागर विधानसभा क्षेत्र में भी ऐसा देखा गया। माहिम में राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे उम्मीदवार थे। उन्हें 33,062 वोट मिले। यहां से उद्धव सेना के कैंडिडेट महेश सावंत ने शिवसेना के सदा सरवणकर को 1,316 वोटों से हरा दिया। अगर शिवसेना (यूबीटी) का उम्मीदवार नहीं होता तो अमित ठाकरे भी अपना पहला चुनाव जीत सकते थे।
अंग्रेजी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बीतचीत में शिवसेना के वर्ली में उम्मीदवार मिलिंद देवड़ा ने कहा, “हमने MNS के साथ बातचीत करने का पूरा प्रयास किया। हम उनकी बहुत सी मांगों को पूरा करने के लिए तैयार थे। मगर, गैर-जरूरी मांग रखे जाने पर उसे पूरा करना संभव नहीं होता है। आखिरकार वह शिवसेना (यूबीटी) की मदद करते नजर आए और उसकी बी-टीम के तौर पर काम किया। हालांकि, हमें यह पता है कि उनका ऐसा इरादा नहीं था। अगर माहिम और वर्ली में एमएनएस नहीं रही होती तो इसमें कोई दोराय नहीं कि हम बड़े अंतर से जीते होते।”