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अडानी मामले में कांग्रेस ने दोहराई ‘जेपीसी’ की माँग, कहा- अमेरिका में लगे ‘आरोप’ सबूत
21 Nov 2024
अमेरिका में उद्योगपति गौतम अडानी पर लगे आरोपों के आधार पर कांग्रेस ने एक बार फिर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की माँग को सही ठहराया है। गुरुवार को पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि जल्द ही जेपीसी का गठन किया जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अब तक जिन 100 सवालों को ‘'हम अडानी के हैं कौन' श्रृंखला में कांग्रेस ने पूछा था, उनके ज़वाब भी उन्हें नहीं मिले है।
दरअसल, अमेरिकी अभियोजकों ने अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी पर आरोप लगाया है कि उन्होंने भारतीय सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देकर सौर परियोजनाओं के अनुबंध और आर्थिक सहायता हासिल की है। सागर अडानी ‘अडानी ग्रीन एनर्जी’ के कार्यकारी निदेशक है। अडानी ने इस कथित योजना के तहत 2020 से 2024 तक 25 करोड़ डॉलर (करीब 2236 करोड़ रुपये) की रिश्वत दी गई। परियोजना से अडानी को दो अरब डॉलर (16,800 करोड़ रुपये) से अधिक का मुनाफा होगा। अमेरिकी अभियोजकों का कहना है कि अडानी कंपनी की तरफ़ से उन्हें इस बारे में कोई सूचना भी नहीं दी गयी थी। जिन अन्य लोगों पर आरोप लगाया गया है, उनमें कंपनी के मुख्य कार्यपालक अधिकारी रहे विनीत जैन का भी नाम शामिल है।
जयराम राम रमेश ने क्या कहा
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा, “न्यूयॉर्क के पूर्वी जिले के अमेरिकी अटॉर्नी कार्यालय द्वारा गौतम अडानी और उनसे जुड़े अन्य लोगों पर गंभीर आरोप लगाना, उस मांग को सही ठहराता है जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जनवरी, 2023 से विभिन्न 'मोदानी' घोटालों की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जांच के लिए कर रही है।” उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने अडानी से जुड़े घोटालों के विभिन्न पहलुओं और प्रधानमंत्री एवं उनके पसंदीदा पूंजीपति के बीच के घनिष्ठ संबंधों को उजागर करते हुए 100 सवाल पूछे थे, और इन सवालों के जवाब आज तक पार्टी को नहीं दिए गए हैं।
पार्टी महासचिव ने कहा कि कांग्रेस अडानी समूह के लेन-देन की जेपीसी से जांच कराने की अपनी मांग इसलिए दोहराती है, क्योंकि इसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में एकाधिकार को बढ़ावा मिल रहा है। इसके साथ ही मुद्रास्फीति बढ़ रही है, और विशेष रूप पड़ोस के देशों में विदेश नीति के लिए बड़ी चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं।
कांग्रेस नेता के अनुसार, कई मौकों पर गौतम अडानी ने 'रिश्वत की स्कीम' को आगे बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत रूप से भारत सरकार के एक अधिकारी से मुलाकात की। यह साबित करने के लिए सबूत के तौर पर 'इलेक्ट्रॉनिक' और 'सेलुलर फोन' है। उन्होंने आरोप लगाया कि ये सब प्रधानमंत्री के स्पष्ट संरक्षण और 'कुछ नहीं होगा' वाली सोच के साथ किया गया है।
रमेश ने कहा, “तथ्य यह है कि अडानी की उचित जांच करने के लिए विदेशी अधिकार क्षेत्र का सहारा लिया गया है, इससे पता चलता है कि कैसे भारतीय संस्थानों पर भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) ने कब्जा कर लिया है और कैसे लालची एवं सत्ता के भूखे नेताओं ने दशकों के संस्थागत विकास को बर्बाद कर दिया है।” इससे सेबी की नाकामी भी एक बार फिर से सामने आती है।