दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कथित शराब घोटाले मामले में ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ बुधवार को एक बार फिर दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है। याचिका दायर कर पूर्व मुख्यमंत्री ने ट्रायल कोर्ट की ओर से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शिकायत पर संज्ञान लेने के फैसले को चुनौती दी है। याचिका में मांग की गयी है कि उनके ख़िलाफ़ ट्रायल कोर्ट में चल रहे मुक़दमें पर रोक लगा दी जाए। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक ने इसके लिए मंजूरी की कमी का हवाला दिया है। मामले की सुनवाई गुरुवार को होने की संभावना है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि निचली अदालत के न्यायाधीश ने कथित आदेश में पीएमएलए की धारा 3 के तहत अपराध का संज्ञान लेने में गलती की है। याचिकाकर्ता केजरीवाल ने कहा है कि अभियोजन के लिए सीआरपीसी की धारा 197 (1) के तहत पूर्व मंजूरी प्राप्त करना जरूरी है, लेकिन उनके मामले में ईडी ने ऐसा नहीं किया है। यह विशेष रूप से जरूरी है क्योंकि याचिकाकर्ता अरविंद केजरीवाल कथित अपराध के समय एक लोक सेवक (मुख्यमंत्री) थे।
दरअसल, ईडी ने मजिस्ट्रेट अदालत से अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने की माँग की थी। ईडी ने मुक़दमा चलाए जाने का तर्क देते हुए कहा कि आबकारी मामले में केजरीवाल ने जाँच एजेंसी के समन का ज़वाब नहीं दिया था।
हाई कोर्ट का ईडी से सवाल
इससे पहले 12 नवंबर को दिल्ली हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की ओर से दायर उस याचिका पर ईडी से जवाब मांगा था, जिसमें उन्होंने उन्हें जारी समन को चुनौती दी है। अरविंद केजरीवाल इस समय ईडी और सीबीआई केस में जमानत पर हैं। केजरीवाल को इस मामले में इसी साल 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी थी। केजरीवाल के अलावा इस मामले में दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह और पार्टी नेता विजय नायर को भी जेल जाना पड़ा था। फिलहाल सभी नेता जमानत पर बाहर हैं।
शराब नीति मामले में ईडी का तर्क
केंद्रीय जांच एजेंसियों ईडी और सीबीआई का आरोप है कि अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों ने गलत तरीके से शराब कारोबारियों को फायदा पहुंचाया, और बदले में उनसे रिश्वत ली। रिश्वत की रकम का इस्तेमाल पंजाब विधानसभा चुनाव में किए जाने का आरोप है। हालांकि, आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार की ओर से आरोपों को फ़र्ज़ी बताया गया है।