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सुप्रीम कोर्ट ने 'धर्म-निरपेक्षता' को बताया संविधान के मूल ढाँचे का हिस्सा

 22 Oct 2024

सुप्रीम कोर्ट ने धर्मनिरपेक्षता को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। सोमवार को एक मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता हमेशा से ही भारतीय संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा रहा है। ऐसे कई फैसले हैं जो यह स्पष्ट करते हैं कि इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने भाजपा के वरिष्ट नेता सुब्रमण्यम स्वामी की उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्होंने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई 18 नवंबर को करेगा।



सुप्रीम कोर्ट ने कहा भारत धर्मनिरपेक्ष देश

मामले पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आप नहीं चाहते कि भारत धर्मनिरपेक्ष हो? सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि 'समाजवाद' शब्द की व्याख्या अनिवार्य रूप से पश्चिमी संदर्भ में नहीं की जानी चाहिए। इस शब्द का अर्थ यह भी हो सकता है कि सभी के लिए समान अवसर होना चाहिए। जस्टिस खन्ना ने कहा कि इस कोर्ट के कई निर्णय ऐसे हैं जो कहते हैं कि धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा रही है। अगर संविधान में इस्तेमाल किए गए समानता और बंधुत्व शब्द के साथ-साथ भाग (III )के तहत अधिकारों को देखें तो स्पष्ट संकेत मिलता है कि धर्मनिरपेक्षता को संविधान की मुख्य विशेषता माना गया। जस्टिस खन्ना ने कहा कि जब संविधान को अपनाया गया था और चर्चा चल रही थी, तब हमारे पास केवल फ्रांसीसी मॉडल था। जिस तरह से हमने इसे विकसित किया है, वह कुछ अलग है। हमने जो अधिकार दिए हैं हमने उन्हें संतुलित किया है।

भाजपा नेता के अलावा डॉ.बलराम सिंह नाम के एक व्यक्ति ने भी ऐसी ही याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने भारतीय संविधान में 42वें संशोधन को चुनौती दी है, जिसे आपातकाल के दौरान दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने किया था। दरअसल, इंदिरा गांधी सरकार द्वारा 1976 में लाए गए 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द शामिल किये गये थे। इस संशोधन ने प्रस्तावना में भारत का उल्लेख “संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य” से बदलकर “संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य” कर दिया।


संशोधन से जोड़े शब्दों को अलग से चिह्नित किया गया था


भाजपा नेता स्वामी ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना 26 जनवरी, 1949 को की गई एक घोषणा थी। इसलिए इसमें संशोधन के जरिए शब्द जोड़ना मनमाना था। उन्होंने कहा कि यह दर्शाना गलत है कि वर्तमान प्रस्तावना के अनुसार, भारतीय लोगों ने 26 नवंबर, 1949 को भारत को समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बनाने पर सहमति व्यक्त की थी। इसके जवाब में जस्टिस खन्ना ने कहा कि संशोधन द्वारा जोड़े गए शब्दों को अलग से कोष्ठक द्वारा चिह्नित किया गया था। इसलिए यह सभी के लिए स्पष्ट है कि उन्हें 1976 के संशोधन द्वारा जोड़ा गया था। जस्टिस खन्ना ने आगे बताया कि राष्ट्र की “एकता” और “अखंडता” जैसे शब्द भी संशोधन द्वारा जोड़े गये।