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पंजाब: ‘निर्विरोध विजेताओं’ पर हाईकोर्ट की आपत्ति, पंचायत चुनाव पर लगाई ‘अंतरिम रोक’

 11 Oct 2024

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने पंचायत चुनावों में नामांकन पत्र दाखिल करने के चरण में कथित सत्ता के घोर दुरुपयोग के रूप में राज्य मशीनरी के इस्तेमाल को लेकर पंजाब सरकार की आलोचना की। कोर्ट में मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस संदीप मौदगिल और जस्टिस दीपक गुप्ता की अवकाश पीठ ने कहा कि चुनाव शुरू होने से पहले ही अन्य उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों को मनमाने ढंग से खारिज करके उम्मीदवारों को ‘निर्विरोध’ विजेता घोषित कर दिया गया। गुरुवार को कोर्ट ने याचिका में शामिल गांवों के संबंध में आगे की चुनाव कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगा दी है। प्रदेश में चुनाव 15 अक्टूबर को होने थे। गौरतलब है कि हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर 250 से अधिक याचिकाएं दायर की गयी है। मामले में अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी।


आरोप है कि कुछ मामलों में कथित सत्ताधारी पार्टी के अधिकारियों ने नामांकन पत्र ही फाड़ दिए, जबकि अन्य मामलों में नामांकन पत्र बिना किसी कारण या झूठे कारणों से खारिज कर दिए गए। कोर्ट में कुछ नामांकन पत्र खो जाने की बात भी कही गयी है। न्यायालय ने कहा कि जिन उम्मीदवारों के नामांकन खारिज किए गए, उनकी आपत्तियों के मामलों में न तो कोई सुनवाई हुई और न ही कोई जांच की गई, जो पंजाब पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 38 और 39 के ख़िलाफ़ है। निर्विरोध चुनाव से लोगों के मतदान का अधिकार ख़त्म हो जाता है।

कोर्ट ने कहा कि यह बिलकुल नहीं समझा जाना चाहिए कि वह मामले में हस्तक्षेप कर के चुनाव पर सवाल उठा रहा है, लेकिन कोर्ट चुनाव को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया के साथ पूरा होते हुए देखना चाहता है। प्रतिनिधि लोकतंत्र की वैधता और विश्वास को बनाए रखना अनिवार्य है, जिसके लिए अंतरिम आदेश जारी करने की आवश्यकता है।


कोर्ट की सख़्त टिप्पणियाँ


कोर्ट के समक्ष कुछ सबूत पेश किये गए जिसमें ‘निर्विरोध विजेताओं’ को मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और आम आदमी पार्टी (आप) विधायकों के साथ जश्न मनाते हुए देखा गया। न्यायालय ने कहा कि किसी भी उम्मीदवार को निर्विरोध विजेता घोषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि मतदाताओं के पास ‘नोटा’ का विकल्प होता है। ऐसा किया जाना असंवैधानिक है और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। हालांकि वोट देने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही संवैधानिक अधिकार है, बल्कि यह एक वैधानिक अधिकार है, जिसे नोटा के वैकल्पिक ‘आधार’ पर भी नहीं छीना जा सकता।

कोर्ट ने कहा, “हमारा देश लोकतांत्रिक देश है, जिसमें स्वतंत्र इच्छा के साथ चुनाव करने का अधिकार लोगों को दिया गया है। राज्य की कार्रवाई ने न केवल मतदाताओं और निर्वाचकों के ऐसे अधिकार पर प्रतिबंध लगाया है, बल्कि यह हमारे संविधान के मूल ढांचे यानी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को नष्ट करने का भी प्रयास है।”