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‘एक देश, एक चुनाव’ पर केंद्र के रुख़ से सहमत नहीं विपक्ष, संसद में बीजेपी की होगी मुश्किल

 19 Sep 2024

‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में तैयार समिति की सिफारिशों को बिल के रूप में लाने की तैयारी केंद्र सरकार कर चुकी है। बिल को शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किया जाएगा, लेकिन बिल को पास कराना सरकार के लिए आसान नहीं रहने वाला है। संसद में सरकार और विपक्ष की संख्या को देखते हुए, केंद्र को विपक्ष के समर्थन की भी जरूरत पड़ेगी। इधर, विपक्ष शुरू से ही एक चुनाव को लेकर केंद्र सरकार के रुख़ से सहमत नहीं है। विपक्ष ने एक स्वर में बोलते हुए कहा कि बीजेपी देश के लोगों का मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए एक चुनाव के मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रही है।


कांग्रेस ने कहा कि देश में एक चुनाव व्यावहारिक ही नहीं है, इसे ज़मीनी स्तर पर लागू करना दूर की बात है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे हालिया चुनाव के लिए बीजेपी की साज़िश करार दिया। उन्होंने कहा कि जब देश में चुनाव आते है तो बीजेपी के पास कोई मुद्दा नहीं होता है, इसलिए वह वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाते है। एक देश एक चुनाव की नीति संविधान, लोकतंत्र और संघीय व्यवस्था के ख़िलाफ़ है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि देश ऐसी नीति को कभी भी स्वीकार नहीं करने वाला है।

सीपीआई नेता डी राजा ने विशेषज्ञों का हवाला देते हुए कहा कि एक चुनाव की नीति वास्तविकता से परे है। इसे किसी भी तरह से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार जब बिल संसद में लेकर आएगी तो विपक्ष को सभी जरूरी जानकारियां देनी चाहिए। सभी को मिलकर एक चुनाव के परिणामों का अध्ययन करने की जरूरत है। राष्ट्रीय जनता दल से राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा, “हम एक राष्ट्र एक चुनाव के विचार का विरोध करते है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि परामर्श के वक़्त 80 फ़ीसदी लोगों ने इसका समर्थन किया। हम जानना चाहते है कि यह 80 फ़ीसदी कौन है। क्या किसी ने हम से कुछ पूछा या बात की।”

‘आप’ पार्टी से सांसद संदीप पाठक ने सरकार से पूछा कि क्या यह केंद्र की राज्यों को अस्थिर करने की भयावह योजना है। उन्होंने हालिया चुनावी घोषणा पर सवाल उठाते कहा, “कुछ दिन पहले, चार राज्यों के चुनावों की घोषणा होनी थी, लेकिन उन्होंने केवल हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के लिए चुनावों की घोषणा की और महाराष्ट्र और झारखंड को छोड़ दिया। यदि वे चार राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं करा सकते, तो वे पूरे देश में एक साथ चुनाव कैसे करेंगे। क्या होगा यदि कोई राज्य सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गिर जाती है? क्या उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा? क्या यह राज्यों को अस्थिर करने की एक भयावह योजना है?”

जेएमएम प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि सरकार के फैसले हमें साम्राज्यवाद की ओर धकेल रहे हैं। देश में ‘एक चुनाव’ संभव और व्यावहारिक दोनों ही नहीं है, यह सीधे तौर से संविधान पर हमला है।”


क्या है संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष की स्थिति


केंद्र सरकार को ‘एक चुनाव’ से जुड़ा बिल संसद से पास करवाने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, क्योंकि इसमें संविधान में संशोधन की प्रक्रिया भी शामिल है। बिल को लागू करने के लिए कम से कम छह संशोधनों की आवश्यकता होगी। इसके बाद इसे सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के समर्थन की जरूरत होगी। बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के पास संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत जितनी संख्या है, लेकिन किसी भी सदन में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करना एक चुनौती होगी। राज्यसभा की 245 सीटों में से एनडीए के पास 112 और विपक्षी दलों के पास 85 सीटें हैं। जबकि दो-तिहाई बहुमत के लिए सरकार को कम से कम 164 वोटों की ज़रूरत है।

लोकसभा में भी एनडीए के पास 545 सीटों में से 292 सीटें हैं। दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा 364 है। लेकिन यहाँ की स्थिति बीजेपी के पक्ष में जा सकती है, क्योंकि बहुमत का आधार कुल उपस्थित सदस्यों के आधार पर किया जाता है।