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राज्यों से खनन गतिविधियों पर कर लगाने का अधिकार नहीं छीन सकता है केंद्र - सुप्रीम कोर्ट

 26 Jul 2024

खनन के क्षेत्र में राज्य के अधिकार क्षेत्र को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ी बात कही है। कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुसार, राज्यों को पूरा हक है कि वह राज्य में होने वाली खनन गतिविधियों पर कर (टैक्स) लगायें। कोर्ट ने कहा कि राज्य उतना ही कर लगा सकते है, जिसकी सीमा केंद्र सरकार ने नियमों के तहत निर्धारित की हो। कोर्ट ने रॉयल्टी और कर को अलग- अलग बताया है। गौर करने वाली बात यह है कि राज्य खनन पर रॉयल्टी और कर दोनों ही लगाते हैं। मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि केंद्र रॉयल्टी के नाम पर राज्य से उसके कर के अधिकार को नहीं छीन सकता है। लेकिन अगर संसद खनन व्यवस्था के नियमों को लेकर कोई संशोधन करती है, और केंद्र सरकार नए नियमों में राज्य के कर के अधिकार को छीन लेती है, तब मामला पूरा ही अलग हो जायेगा। 


कोर्ट ने अपने फैसले से खनन के मामलों में राज्य और केंद्र के अधिकारों को स्पष्ट करने में बड़ी भूमिका निभाई है। राज्य और केंद्र हमेशा खनन में कर व्यवस्था को लेकर एक दूसरे के सामने आ जाते थे। कोर्ट में मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस अभय ओका, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्र, जस्टिस उज्जवल भुयान, जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने की। मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी।

जाहिर है कि केंद्र के इस निर्णय से उन राज्यों को ज्यादा लाभ मिलेगा, जिनके पास प्राकृतिक संसाधन मौजूद है। पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड को कोर्ट के निर्णय के बाद सबसे अधिक लाभ मिलने वाला है, क्योंकि इन राज्यों में खनन को लेकर स्थानीय क़ानून मौज़ूद हैं। खनन को लेकर कर का मुद्दा पहली बार 1989 में आया था, जब इंडिया सीमेंट लिमिटेड ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें तमिलनाडु सरकार कंपनी से रॉयल्टी के साथ कर भी ले रहाी थी। इंडिया सीमेंट ने दावा किया कि वह पहले से ही राज्य को रॉयल्टी का भुगतान कर रही है इसलिए बाद में लगाया गया उपकर राज्य की विधायी क्षमता से परे था। मद्रास हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के खिलाफ फैसला सुनाते हुए कहा था कि राज्य रॉयल्टी लगा सकते हैं लेकिन खनन और खनिज विकास पर अतिरिक्त कर नहीं लगा सकते।

कोर्ट ने कहा कि राज्यों को खनिज गतिविधियों पर कर लगाने का अधिकार राज्य सूची की प्रविष्टि 49 से प्राप्त होता है, जो राज्यों को भूमि और भवनों पर कर लगाने की अनुमति देता है।


केंद्र को लेकर कोर्ट ने क्या कहा

कोर्ट ने कहा कि केंद्र को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि अगर राज्य खनन पर कर लगायेगा, तो इससे कोई संवैधानिक संकट खड़ा हो जायेगा। साथ ही पीठ ने इस चिंता को खारिज कर दिया कि राज्यों को खनिज अधिकारों पर कराधान के अधिकार देना खनिज विकास के खिलाफ होगा। इसके अलावा संविधान संसद को यह अधिकार देता है कि वह उन सीमाओं को लागू करने के लिए कदम उठाये जिसके आधार पर राज्य खनिज अधिकारों पर कर लगा सके।


रॉयल्टी कोई कर नहीं

कोर्ट ने कहा कि रॉयल्टी का भुगतान किसी खास काम को करने के लिए किया जाता है, जैसे कि मिट्टी से खनिज निकालना, लेकिन कर को कानून के अनुसार लगाया जाता है। न्यायालय ने कहा कि रॉयल्टी एक समझौते का नतीज़ा है, जबकि कर कानून के अधिकार द्वारा लगाया जाता है।

कोर्ट ने कहा कि खनन गतिविधियां सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा की जाती हैं। सरकार को अन्य सार्वजनिक गतिविधियों के अलावा भारतीय खनिज अन्वेषण निगम जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को चलाने के लिए राजस्व की जरूरत होती है, जिसे वह खनन पर कर लगाकर ही जुटाता है। इसलिए राज्य के लिए कर लगाना जरूरी हो जाता है।