
‘कभी कॉफी ब्रेक, कभी लंच ब्रेक’, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जजों की कार्यशैली पर उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड के चार दोषियों की याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की कार्यशैली को लेकर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि कुछ जज बार-बार अनावश्यक ब्रेक लेते हैं और अब समय आ गया है कि उनके कामकाज का परफॉर्मेंस ऑडिट किया जाए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. के. सिंह की पीठ ने कहा कि कई मामलों में सुनवाई पूरी होने के बाद भी फैसले सालों तक सुरक्षित रखे जाते हैं, जो न्याय प्रक्रिया के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। पीठ ने कहा, "कुछ जज बहुत मेहनत करते हैं, लेकिन कुछ जज बार-बार अनावश्यक ब्रेक लेते हैं—कभी कॉफी ब्रेक, कभी लंच ब्रेक। यह एक गंभीर मसला है जिसे अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।"
कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों को यह समझना होगा कि उनका न्यायिक आउटपुट केवल उनके निर्णयों से नहीं, बल्कि उनकी कार्यसंस्कृति से भी जुड़ा होता है। पीठ ने कहा, "हमें यह देखने की जरूरत है कि हम कैसा परफॉर्म कर रहे हैं, और न्यायिक प्रक्रिया में लोगों का विश्वास कैसे कायम रखा जाए। यह टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई के दौरान आई, जिसमें झारखंड के चार आजीवन कारावास की सजा पाए अभियुक्तों ने आरोप लगाया था कि उनकी आपराधिक अपीलों पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है, लेकिन फैसले दो से तीन वर्षों तक सुरक्षित रखे गए।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी बताया कि वे अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्याय में देरी का गंभीर उदाहरण बताते हुए कहा कि ऐसी स्थिति न्यायिक व्यवस्था में लोगों का विश्वास कमजोर कर सकती है। पीठ ने कहा, "इस तरह की याचिकाएं बार-बार दाखिल न हों, इसके लिए दिशानिर्देश तय किए जाने चाहिए।
5 मई को हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया था कि चारों मामलों में अब निर्णय सुना दिया गया है। इनमें से तीन मामलों में दोषियों की अपीलें स्वीकार कर ली गई हैं, जबकि चौथा मामला मतभेद के कारण दूसरी पीठ को भेजा गया है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस याचिका के जरिए जो मसला उठाया गया है, वह केवल इन चार अभियुक्तों तक सीमित नहीं है। कोर्ट ने संकेत दिया कि वह जल्द ही इस विषय पर व्यापक निर्देश जारी कर सकता है।
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