2027 में वापसी की तैयारी में जुटीं मायावती, 2007 की तर्ज़ पर भाईचारा कमेटियों का किया गठन, OBC पर फोकस
उत्तर प्रदेश की राजनीति में लगातार कमजोर प्रदर्शन और पिछड़ने के बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर अपनी रणनीति में एक नया और महत्वपूर्ण दांव खेला है। बसपा की सर्वोच्च नेता मायावती ने 2007 की सफल रणनीति को दोहराते हुए 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए भाईचारा कमेटियों के गठन की घोषणा की है और इसके लिए व्यापक स्तर पर आयोजनों और तैयारियों की शुरुआत कर दी है। मायावती ने साल 2007 में भाईचारा कमेटियों के जरिए दलित समुदाय के साथ-साथ ब्राह्मण समाज को एकजुट करने में सफलता हासिल की थी, जिसके परिणामस्वरूप बसपा ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। इस बार उनका ध्यान अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने पर केंद्रित है। इसी उद्देश्य से मायावती ने मंगलवार को ओबीसी समाज के लिए एक विशेष और महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया, जिसमें भाईचारा कमेटियों के पुनर्गठन की औपचारिक घोषणा की गई।
यह रणनीति 2007 में बेहद कारगर साबित हुई थी, जब बसपा ने भाईचारा कमेटियों के माध्यम से पहली बार बिना किसी गठबंधन या सहयोगी दल की मदद के अपनी सरकार बनाई थी। हालांकि, अगले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) से हार का सामना करने के बाद इन कमेटियों का कार्यकाल समाप्त हो गया और इन्हें दोबारा सक्रिय करने का प्रयास नहीं किया गया। इसके बाद से लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बसपा का प्रभाव और ताकत लगातार कम होती चली गई। वर्तमान में लोकसभा में बसपा का कोई प्रतिनिधित्व नहीं बचा है और विधानसभा में भी महज एक विधायक रह गया है।
बहुजन समाज को संगठित करने का संकल्प
मंगलवार को ओबीसी समुदाय के लिए भाईचारा कमेटी के गठन की घोषणा के दौरान मायावती ने कहा कि दलितों की तरह ही अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को केंद्र और राज्य सरकारों के जातिवादी, संकीर्ण, भेदभावपूर्ण और उपेक्षापूर्ण रवैये का शिकार होना पड़ रहा है। इस रवैये के कारण ओबीसी समाज को हर स्तर पर शोषण, तिरस्कार और अपमान का दंश झेलना पड़ता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस उत्पीड़न से मुक्ति पाने के लिए डॉ. भीमराव आंबेडकर के संघर्ष और उनके दिखाए रास्ते पर चलते हुए 'बहुजन समाज' के सभी घटकों को आपसी भाईचारे और एकता के आधार पर संगठित करना जरूरी है। मायावती ने कहा कि ऐसा करके एक सशक्त राजनीतिक ताकत बनाई जा सकती है, जो वोटों की ताकत के बल पर सत्ता की मास्टर चाबी हासिल कर सकेगी और बहुजन समाज के हितों की रक्षा कर सकेगी।
पार्टी मुख्यालय में आयोजित इस विशेष बैठक में मायावती ने जोर दिया कि इस अभियान को और अधिक ऊर्जा, गति, प्रभावशाली और सार्थक बनाने के लिए एक नया और जोरदार जागरूकता अभियान शुरू करने की आवश्यकता है।
इस अभियान के तहत गांव-गांव और घर-घर तक पहुंचकर लोगों को कांग्रेस, भाजपा और सपा जैसी पार्टियों के दलित और ओबीसी विरोधी चाल-चरित्र, उनके कपटपूर्ण व्यवहार, छल-छद्म और इन समुदायों को उनके जायज हक व न्याय से वंचित रखने की नीतियों के बारे में जागरूक किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इन पार्टियों की गलत नीतियों और उपेक्षा के कारण बहुजन समाज का जीवन लगातार बदहाल, दयनीय और संकटग्रस्त बना हुआ है।
मायावती ने यह भी कहा कि अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित कराने से लेकर उन्हें पार्टी संगठन में उचित स्थान और प्रतिनिधित्व देने तक, साथ ही उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार के दौरान उनके हित, कल्याण और उत्थान के लिए उठाए गए कदम अभूतपूर्व और ऐतिहासिक रहे हैं। इसके अलावा, ओबीसी समाज के महान संतों, गुरुओं और महापुरुषों को सम्मान और पहचान देने के लिए कई ठोस और बुनियादी कार्य किए गए, जिनमें से कुछ प्रमुख कार्यों का उल्लेख बैठक में विशेष रूप से किया गया।
बैठक में यह आम सहमति बनी कि गांधीवादी कांग्रेस, आरएसएस से प्रभावित भाजपा और सपा, जिनकी पीडीए को लोग व्यंग्यात्मक रूप से 'परिवार डेवलपमेंट अथॉरिटी' भी कहते हैं, इनमें से किसी भी दल में बहुजन समाज, विशेष रूप से ओबीसी वर्ग के करोड़ों लोगों का हित न तो पहले कभी सुरक्षित रहा और न ही भविष्य में सुरक्षित रह सकता है। इसलिए मायावती के नेतृत्व में इन सभी जातिवादी और बहुजन विरोधी पार्टियों को परास्त करके राजनीतिक सत्ता की मास्टर चाबी हासिल करना ही बहुजन समाज के लिए अपने "अच्छे दिन" लाने का सबसे बेहतर, मजबूत और एकमात्र व्यावहारिक विकल्प है। इसके साथ ही, मायावती ने अगले महीने 14 अप्रैल को डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती को परंपरागत तरीके से पूरे मिशनरी उत्साह, जोश और सम्मान के साथ मनाने के स्पष्ट निर्देश दिए।
बैठक के समापन के बाद बसपा सुप्रीमो ने पार्टी के विभिन्न नेताओं को राज्य के अलग-अलग मंडलों और क्षेत्रों की जिम्मेदारियां सौंपीं। प्रयागराज मंडल में भाईचारा संगठन का दायित्व अवधेश कुमार गौतम और अनिल सिंह पटेल को दिया गया। महाकुंभ मेला भाईचारा संगठन की जिम्मेदारी प्रवीण गौतम और विकास पाल को सौंपी गई। फतेहपुर में रिंकू गौतम और रामशरण पाल को संयोजक बनाया गया, जबकि प्रतापगढ़ में शोभनाथ गौतम और बाके लाल पटेल को यह कार्यभार दिया गया। कौशांबी में मनीष गौतम और पप्पू निषाद, अयोध्या मंडल में रोहित गौतम और विजय वर्मा, अंबेडकरनगर में कृष्णकांत अंबेडकर उर्फ पंकज और मनोज कुमार वर्मा, सुल्तानपुर में दीपक भारती और नन्हेलाल निषाद, मिर्जापुर मंडल में संतोष कुमार और संतोष कुमार पाल, सोनभद्र में परमेश्वर और रमेश कुमार कुशवाहा, भदोही में रामसनेही गौतम और वंशीधर मौर्य, अमेठी में विद्या प्रसाद गौतम और रमेश कुमार मौर्या, तथा बाराबंकी में प्रदीप कुमार गौतम और माधव सिंह पटेल को जिम्मेदारियां दी गईं।
जिलाध्यक्षों की नियुक्तियों में अयोध्या में कृष्ण कुमार पासी, अंबेडकरनगर में सुनील सावंत गौतम, सुल्तानपुर में सुरेश कुमार गौतम, अमेठी में दिलीप कुमार कोरी, बाराबंकी में कृष्ण कुमार रावत, प्रयागराज में पंकज कुमार गौतम, महाकुंभ मेला में सतीश जाटव, फतेहपुर में डॉ. दीप गौतम, प्रतापगढ़ में सुशील कुमार गौतम और कौशांबी में राकेश कुमार गौतम को चुना गया।