क्या छत्रपति शिवाजी महाराज मुस्लिम विरोधी थे ? जानिए आप भी !!

शिवाजी महाराज जिनके नाम पर देश को जोड़ने की बात की जाती है और जिनके जाति पर सवाल उठाए जाते है, उनके पिता का नाम शाहजी भोसले था। एक दिलचस्प कहानी है शिवाजी के दादा मालोजी राव भोसले ने सूफी संत शाह शरीफ के सम्मान में अपने बेटों को नाम शाहजी और शरीफ जी रखा था। 


जन्म और युद्ध - 

History with molitics में हम बात करेंगे उस महान इंसान के बारे मे जो कभी भी किसी भी धर्म या व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया। शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में हुआ था। जन्म से ही वे बहुत प्रभावित इंसान थे, जो दुश्मन को चकमा देकर के गुप्त रहस्य से वार करके हरा देते थे। उनकी इस रणनीति को गुरिल्ला युद्ध नीति के नाम से भी जाना जाता है। महाराज का जन्म पुणे के शिवनेरी किले में हुआ था और छत्रपति शिवाजी के पिता बीजापुर के सुल्तान की सेना के सेनापति थे। शिवाजी महाराज को बचपन में उनके दादा मालोजीराव भोसले ने राजनीति और युद्ध के गुण सिखाए और माता जीजाबाई ने शिवाजी को धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान दिया। 17 साल की उम्र में साल 1646 में शिवाजी महाराज ने युद्ध करना शुरू किया और युद्ध लड़ते-लड़ते वीर शिवाजी ने तोर्ण, चाकन, कोंडाना, ठाणे, कल्याण और भिवंडी जैसे किलों को मुल्ला अहमद से जीत कर मराठा साम्राज्य में शामिल किया था।


Maratha Empire

 

युद्ध और धर्म आधारित अफवाहें - 

शिवाजी के जीवन की सबसे चर्चित और महत्वपूर्ण घटना साल 1659 में बीजापुर की बड़ी साहिबा ने अफज़ल खान को 10 हज़ार सैनिकों के साथ शिवाजी राजे पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया। वहीं कई लोगों का मानना है कि, शिवाजी महाराज मुस्लिम विरोधी थे। लोगों को शायद ही यह मालूम हो कि शिवाजी महाराज के नौसेना की कमान सिद्दी संबल के हाथों में थी और सिद्दी मुसलमान उनके नौसेना में बड़ी संख्या में थे। जब शिवाजी आगरा के किले में नजरबंद थे तब कैद से निकल भागने में जिन दो व्यक्तियों ने उनकी मदद की थी उनमें से एक मुसलमान था और उनका नाम मदारी मेहतर था। उनके गुप्‍तचर मामलों के सचिव मौलाना हैदर अली थे और उनके तोपखाने की कमान इब्राहिम गर्दी के हाथों में थी, "शिवाजी मुस्लिम विरोधी थे" यह धारणा राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बनाई गई। शिवाजी के ख़िलाफ़ अपनी तलवार उठाने वाले अफ़ज़ल ख़ान के सलाहकार भी एक हिंदू कृष्णमूर्ति भास्कर कुलकर्णी थे। शिवाजी ने स्थानीय हिंदू राजाओं के साथ ही औरंगजेब के ख़िलाफ़ भी संग्राम हुए। दिलचस्प बात ये है कि औरंगजेब के साथ युद्ध में औरंगजेब की सेना का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति राजा जयसिंह थे, जो एक राजपूत थे और औरंगजेब के राज दरबार में उच्च अधिकारी थे। 


shivaji

 

मंदिर और मस्जिद निर्माण - 

शिवाजी की नौसेना में बड़ी संख्या में मुसलमान सैनिक तैनात थे। खासकर सिद्दी मुसलमान और शिवाजी ने अपनी राजधानी रायगढ़ में हिंदुओं के जगदीश्वर मंदिर की तरह ही मुस्लिम श्रद्धालुओं के लिए भी मस्जिद का निर्माण कराया था। शिवाजी सभी धर्मों का सम्मान करते थे, इतिहास के एक और तथ्य से इसकी जानकारी मिलती है। उन्होंने हजरत बाबा याकूत थोर वाले को ताउम्र पेंशन देने का आदेश दिया था। इसके अलावा फादर एंब्रोज को शिवाजी ने उस वक्त मदद पहुंचाई थी, जब गुजरात के सूरत में उनकी चर्च पर हमला हुआ था। शिवाजी के दादा श्री गोंडे के शेख मुहम्मद के मुरीद थे और शिवाजी के पिता का नाम एक सूफी संत के नाम पर रखा गया था। शिवाजी मुस्लिम सूफी संतों का सम्मान करते थे और उनका भरण-पोषण करते थे। शिवाजी की सेना के लिए कितने मुस्लिम सैनिकों और कमांडरों ने काम किया। शिवाजी ने काजियों को नियुक्त किया और उनसे सलाह लेकर अपने राज्य की मस्जिदों में रोशनी की व्यवस्था करवाई थी। जून 1674 ईस्वी को शिवाजी ने बनारस के गंगाभट्ट नामक ब्राह्मण को बुलाया और उसी दिन उन्होंने अपने राज्याभिषेक करवाया। कई उपाधियां जैसे छत्रपति, हिंदू धर्म सुधारक, गो ब्राह्मण प्रतिपालक जैसी खिताब धारण किए गए। राज्य अभिषेक का कार्यक्रम उनकी राजधानी रायगढ़ में किया गया था।

शिवाजी एक हिंदू शासक, सभी धर्मो के साथ एकजुटता - 

उनके लिए हर हिंदू उतना ही महत्वपूर्ण था, जितना हर एक मुसलमान। उनकी सेना में मुसलमान और हिंदू सैनिक थे। उन्होंने अपनी सभी प्रजा को धर्म को मानने की आजादी दी और उन्हें अपने पूजा-पाठ या नवाज़ पढ़ने के लिए भी खुली आजाद दी थी। शिवाजी ने मुस्लिम पीरों, फकीरों को दान दिया तथा उन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान की थी।औरंगजेब ने शिवाजी को एक स्वतंत्र राजा माना और उन्हें “राजा” की उपाधि दी परंतु औरंगजेब शिवाजी के विरुद्ध चाल चलने से कभी बाज नहीं आया।


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महिलाओं के प्रति आदर की मिसाल - 

शिवाजी हर वर्ग की महिलाओं का सम्मान करते थे और ऐसा कहा जाता है कि एक युद्ध जीतने के बाद शिवाजी के सैनिक एक स्त्री को उठा लाए थे। जब शिवाजी ने पूछा कि ये क्या लाए हो? तब सैनिको ने बताया कि यह उनके लिए सुन्दर उपहार है तो शिवाजी ने जानने की कोशिश की कि ऐसा क्या उपहार है। उन्होंने पेटी को खुलवाने का आदेश दिया। पेटी को खोला गया तो पता चला कि इसमें तो एक स्त्री है। शिवाजी गुस्से से क्रोधित हो गए और उनकी आंखों से पानी आ गए। उन्होने उस स्त्री के पैर पड़कर कहा कि हे माता! मेरे सैनिकों से गलती हो गई। आप हमें माफ कर दीजिए और आपको अपने घर सुरक्षित छोड़ा जाएगा। इसके बाद शिवाजी ने अपने सभी सैनिकों को आदेश दिया कि इस घटना के बाद अगर किसी ने भी और किसी भी स्त्री का अपमान किया या उसके तरफ गलत नजरों से देखा तो उसका गला वहीं काट दिया जायेगा।

शिवाजी महाराज की मृत्यु - 

शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 को रायगढ के महल में अत्यधिक चिंता की वजह से हुई और शिवाजी अपने पूरे जीवन स्वराज्य की स्थापना करने में संघर्षरत रहे। उन्होंने सभी बिखरे हुए मराठों को एक साथ लाकर यह सिद्ध किया कि वह एक राज्य ही नहीं बल्कि एक राष्ट्र का भी निर्माण कर सकते हैं।  


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